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यदि॑न्द्राग्नी॒ उदि॑ता॒ सूर्य॑स्य॒ मध्ये॑ दि॒वः स्व॒धया॑ मा॒दये॑थे। अत॒: परि॑ वृषणा॒वा हि या॒तमथा॒ सोम॑स्य पिबतं सु॒तस्य॑ ॥

English Transliteration

yad indrāgnī uditā sūryasya madhye divaḥ svadhayā mādayethe | ataḥ pari vṛṣaṇāv ā hi yātam athā somasya pibataṁ sutasya ||

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Pad Path

यत्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। उत्ऽइ॑ता। सूर्य॑स्य। मध्ये॑। दि॒वः। स्व॒धया॑। मा॒दये॑थे॒ इति॑। अतः॑। परि॑। वृ॒ष॒णौ॒। आ। हि। या॒तम्। अथ॑। सोम॑स्य। पि॒ब॒त॒म्। सु॒तस्य॑ ॥ १.१०८.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:108» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:27» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यत्) जिस कारण (इन्द्राग्नी) पवन और बिजुली (उदिता) उदय को प्राप्त हुए (सूर्य्यस्य) सूर्य्यमण्डल के वा (दिवः) अन्तरिक्ष के (मध्ये) बीच में (स्वधया) अन्न और जल से सबको (मादयेथे) हर्ष देते हैं (अतः) इससे (वृषणा) सुख की वर्षा करनेवाले (परि) सब प्रकार से (आ, यातम्) आते अर्थात् बाहर और भीतर से प्राप्त होते और (हि) निश्चय है कि (अथ) इसके अनन्तर (सुतस्य) निकासे हुए (सोमस्य) जगत् के पदार्थों के रस को (पिबतम्) पीते हैं ॥ १२ ॥
Connotation: - पवन और बिजुली के विना किसी लोक वा प्राणी की रक्षा और जीवन नहीं होते हैं, इससे संसार की पालना में ये ही मुख्य हैं ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

यत् याविन्द्राग्नी उदिता सूर्यस्य दिवो मध्ये स्वधया सर्वान् मादयेथे हर्षयतोऽतो वृषणौ पर्य्यायातं परितो बाह्याभ्यन्तरत आगच्छतो हि खल्वथ सुतस्य सोमस्य रसं पिबतं पिबतः ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (यत्) यतः (इन्द्राग्नी) पूर्वोक्तौ (उदिता) उदित्तौ प्राप्तोदयौ (सूर्य्यस्य) सवितृमण्डलस्य (मध्ये) (दिवः) अन्तरिक्षस्य (स्वधया) उदकेनान्नेन वा सह वर्त्तमानौ (मादयेथे) हर्षयतः (अतः, परि०) इति पूर्ववत् ॥ १२ ॥
Connotation: - नहि पवनविद्युद्भ्यां विना कस्यापि लोकस्य प्राणिनो वा रक्षा जीवनं च संभवति तस्मादेतौ जगत्पालने मुख्यौ स्तः ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - वायू व विद्युतशिवाय कोणताही लोक (गोल) किंवा प्राणी यांचे रक्षण होऊ शकत नाही व जीवन जगणे शक्य नसते. त्यासाठी जगाचे पालन करण्यात हे मुख्य आहेत. ॥ १२ ॥