Go To Mantra

अ॒मी ये दे॑वा॒: स्थन॑ त्रि॒ष्वा रो॑च॒ने दि॒वः। कद्व॑ ऋ॒तं कदनृ॑तं॒ क्व॑ प्र॒त्ना व॒ आहु॑तिर्वि॒त्तं मे॑ अ॒स्य रो॑दसी ॥

English Transliteration

amī ye devāḥ sthana triṣv ā rocane divaḥ | kad va ṛtaṁ kad anṛtaṁ kva pratnā va āhutir vittam me asya rodasī ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒मी इति॑। ये। दे॒वः॒। स्थन॑। त्रि॒षु। आ। रो॒च॒ने। दि॒वः। कत्। वः॒। ऋ॒तम्। कत्। अनृ॑तम्। क्व॑। प्र॒त्ना। वः॒। आऽहु॑तिः। वि॒त्तम्। मे॒। अ॒स्य। रो॒द॒सी॒ इति॑ ॥ १.१०५.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:105» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर ये परस्पर कैसे क्या करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! तुम (दिवः) प्रकाश करनेवाले सूर्य्य के (रोचने) प्रकाश में (त्रिषु) तीन अर्थात् नाम, स्थान और जन्म में (अमी) प्रकट और अप्रकट (ये) जो (देवाः) दिव्य गुणवाले पृथिवी आदि लोक (आ) अच्छी (स्थन) स्थिति करते हैं (वः) इनके बीच (ऋतम्) सत्य कारण (कत्) कहाँ और (अनृतम्) झूठे कार्यरूप (कत्) कहाँ और (वः) उनके (प्रत्ना) पुराने पदार्थ तथा उनका (आहुतिः) होम अर्थात् विनाश (क्व) कहाँ होता है, इन सब प्रश्नों के उत्तर कहो ? शेष मन्त्र का अर्थ पूर्व के तुल्य जानना चाहिये ॥ ५ ॥
Connotation: - प्रश्न-जब सब लोकों की आहुति अर्थात् प्रलय होता है तब कार्य्यकारण और जीव कहाँ ठहरते हैं ? इसका उत्तर-सर्वव्यापी ईश्वर और आकाश में कारण रूप से सब जगत् और अच्छी गाढ़ी नींद में सोते हुए के समान जीव रहते हैं। एक-एक सूर्य्य के प्रकाश और आकर्षण के विषय में जितने-जितने लोक हैं, उतने-उतने सब ईश्वर ने बनाये धारण किये तथा इनकी व्यवस्था की है, यह जानना चाहिये ॥ ५ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरेते परस्परं कथं किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे विद्वांसो यूयं दिवो रोचने त्रिष्वमी ये देवा आस्थन वस्तेषामृतं कदनृतं कत्। वस्तेषां प्रत्ना आहुतिश्च क्व भवतीत्येषामुत्तराणि ब्रूत। अन्यत्पूर्ववत् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (अमी) प्रत्यक्षाऽप्रत्यक्षाः (ये) (देवाः) दिव्यगुणाः पृथिव्यादयो लोकाः (स्थन) सन्ति। अत्र तप्तनप्तनथनाश्चेति थनादेशः। (त्रिषु) नामस्थानजन्मसु (आ) समन्तात् (रोचने) प्रकाशविषये (दिवः) द्योतकस्य सूर्यमण्डलस्य (कत्) कुत्र। पृषोदरादित्वात्क्वेत्यस्य स्थाने कत्। (वः) एषां मध्ये (ऋतम्) सत्यं कारणम् (कत्) (अनृतम्) कार्यम् (क्व) (प्रत्ना) प्राचीनानि (वः) एतेषाम् (आहुतिः) होमः प्रलयः। अन्यत्पूर्ववत् ॥ ५ ॥
Connotation: - यदा सर्वेषां लोकानामाहुतिः प्रलयो जायते तदा कार्यं कारणं जीवाश्च क्व तिष्ठन्तीति प्रश्नः। एतदुत्तरं सर्वव्यापक ईश्वर आकाशे च कारणरूपेण सर्वं जगत्सुषुप्तवज्जीवाश्च वर्त्तन्त इति। एकैकस्य सूर्यस्य प्रकाशाकर्षणविषये यावन्तो यावन्तो लोका वर्त्तन्ते तावन्तस्तावन्तः सर्व ईश्वरेण रचयित्वा धृत्वा व्यवस्थाप्यन्त इति वेद्यम् ॥ ५ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - प्रश्न - जेव्हा सर्व लोकांची (गोलांची) आहुती अर्थात् प्रलय होतो तेव्हा कार्यकारण (प्रकृती) व जीव कुठे राहतात? उत्तर - सर्वव्यापी ईश्वर व आकाशात कारणरुपाने जग व गाढ निद्रेत झोपल्याप्रमाणे जीव राहतात. एकेका सूर्याचा प्रकाश व आकर्षण असलेले जितके जितके गोल आहेत तितके तितके सर्व ईश्वराने बनविलेले असून ते धारण करून त्यांची व्यवस्था केलेली आहे हे जाणावे. ॥ ५ ॥