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तद॑स्ये॒दं प॑श्यता॒ भूरि॑ पु॒ष्टं श्रदिन्द्र॑स्य धत्तन वी॒र्या॑य। स गा अ॑विन्द॒त्सो अ॑विन्द॒दश्वा॒न्त्स ओष॑धी॒: सो अ॒पः स वना॑नि ॥

English Transliteration

tad asyedam paśyatā bhūri puṣṭaṁ śrad indrasya dhattana vīryāya | sa gā avindat so avindad aśvān sa oṣadhīḥ so apaḥ sa vanāni ||

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Pad Path

तत्। अ॒स्य॒। इ॒दम्। प॒श्य॒त॒। भूरि॑। पु॒ष्टम्। श्रत्। इन्द्र॑स्य। ध॒त्त॒न॒। वी॒र्या॑य। सः। गाः। अ॒वि॒न्द॒त्। सः। अ॒वि॒न्द॒त्। अश्वा॑न्। सः। ओष॑धीः। सः। अ॒पः। सः। वना॑नि ॥ १.१०३.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:103» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को उससे कौन-कौन काम धारण करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (सः) वह सेनापति सूर्य के तुल्य (गाः) भूमियों को (अविन्दत्) प्राप्त होता (सः) वह (अश्वान्) बड़े पदार्थों को (अविन्दत्) प्राप्त होता (सः) वह (ओषधीः) ओषधियों अर्थात् गेहूँ, उड़द, मूँग, चना आदि को प्राप्त होता (सः) वह (अपः) सूर्य्य जलों को जैसे वैसे कर्मों को प्राप्त होता (सः) तथा वह सूर्य (वनानि) किरणों को जैसे वैसे जङ्गलों को प्राप्त होता है, (अस्य) इस (इन्द्रस्य) सेना बलयुक्त सेनापति के (तत्) उस कर्म को वा (इदम्) इस (भूरि) बहुत (पुष्टम्) दृढ़ (श्रत्) सत्य के आचरण को तुम (पश्यत) देखो और (वीर्य्याय) बल होने के लिये (धत्तन) धारण करो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जो श्रेष्ठ जनों के सत्य आचरण से प्राप्ति है, उसीको धारण करें। उसके विना सत्य पराक्रम और सब पदार्थों का लाभ नहीं होता ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैस्तस्मात् किं किं कर्म धार्यमित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मनुष्या यः स सेनाधिपतिः सूर्य इव गा अविन्दत् सोऽश्वानविन्दत्स ओषधीरविन्दत्स अपोऽविन्दत्स वनान्यविन्दत्तदस्येन्द्रस्येदं भूरि पुष्टं श्रत् सत्याचरणं यूयं पश्यत वीर्याय धत्तन ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (तत्) कर्म (अस्य) सेनापतेः (इदम्) प्रत्यक्षम् (पश्यत)। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (भूरि) बहु (पुष्टम्) दृढम् (श्रत्) सत्याचरणम्। श्रदिति सत्यना०। निघं० ३। १०। (इन्द्रस्य) सेनाबलयुक्तस्य (धत्तन) धरत (वीर्याय) बलाय (सः) सूर्य इव (गाः) पृथिवीः (अविन्दत्) लभते (सः) (अविन्दत्) लभते (अश्वान्) महतः पदार्थान्। अश्व इति महन्ना०। निघं० ३। ३। [?] (सः) (ओषधीः) गोधूमाद्या ओषधीः (सः) (अपः) कर्माणि जलानि वा (सः) (वनानि) जङ्गलान् किरणान् वा ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्योत्तमेन सत्याचरणेन प्राप्तिः सैव धार्या नैतया विना सत्यः पराक्रमः सर्वपदार्थलाभश्च जायते ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे श्रेष्ठ लोकांच्या सत्याचरणाने प्राप्त होते ते माणसांनी अंगीकारावे. त्याशिवाय सत्य, पराक्रम व सर्व पदार्थांचा लाभ होत नाही ॥ ५ ॥