Go To Mantra

स धा॑रयत्पृथि॒वीं प॒प्रथ॑च्च॒ वज्रे॑ण ह॒त्वा निर॒पः स॑सर्ज। अह॒न्नहि॒मभि॑नद्रौहि॒णं व्यह॒न्व्यं॑सं म॒घवा॒ शची॑भिः ॥

English Transliteration

sa dhārayat pṛthivīm paprathac ca vajreṇa hatvā nir apaḥ sasarja | ahann ahim abhinad rauhiṇaṁ vy ahan vyaṁsam maghavā śacībhiḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

सः। धा॒र॒य॒त्। पृ॒थि॒वीम्। प॒प्रथ॑त्। च॒। वज्रे॑ण। ह॒त्वा। निः। अ॒पः। स॒स॒र्ज॒। अह॑न्। अहि॑म्। अभि॑नत्। रौ॒हि॒णम्। वि। अह॑न्। विऽअं॑सम्। म॒घऽवा॑। शची॑भिः ॥ १.१०३.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:103» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:2


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इस जगत् में परमेश्वर से बनाया हुआ यह सूर्य्य कौन काम करता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (मघवा) सूर्य्यलोक (शचीभिः) कामों से (पृथिवीम्) पृथिवी को (धारयत्) धारण करता अपने तेज (च) और बिजुली आदि को (पप्रथत्) फैलाता उस अपने तेज से सब जगत् को प्रकाशित करता (वज्रेण) अपने किरणसमूह से मेघ को (हत्वा) मारके (अपः) जलों को (निः) (ससर्ज) निरन्तर उत्पन्न करता फिर (अहिम्) मेघ को (अहन्) हनता (रौहिणम्) रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न हुए मेघ को (अभिनत्) विदारण करता (व्यंसम्) (वि, अहन्) केवल साधारण ही विदारता हो सो नहीं किन्तु कटि जाँघ भुजा आदि जिसकी ऐसे रुण्ड, मुण्ड, मुचण्ड, उद्दण्ड, वीर के समान विशेष करके मेघों को हनता है (सः) वह सूर्य्यलोक ईश्वर ने रचा है, यह जानो ॥ २ ॥
Connotation: - मनुष्यों को यह देखना चाहिये कि प्रसिद्ध जो सूर्यलोक है वह मेघों के विदारण, लोकों के खींचने और प्रकाश आदि कामों से जल, वर्षा, पृथिवी को धारण और अप्रकट अर्थात् अन्धकार से ढंपे हुए जो पदार्थ हैं उनको प्रकाशित कर सब प्राणियों को व्यवहार में चलाता है, वह परमात्मा के बनाने के विना उत्पन्न नहीं हो सकता ॥ २ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथैतस्मिञ्जगति तद्रचितोऽयं सूर्य्यः किं कर्माऽस्तीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मनुष्या यो मघवा शचीभिः पृथिवीं धारयत्स्वतेजः पप्रथद्विद्युदादींश्च वज्रेण मेघं हत्वाऽपो निःससर्ज पुनरहिमहन् रौहिणमभिनत् न केवलं साधारणमेव हन्ति किन्तु व्यंसं यथा स्यात्तथा व्यहन् स ईश्वरेण रचितोऽस्तीति विजानीत ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (सः) (धारयत्) धरति (पृथिवीम्) भूमिम् (पप्रथत्) स्वतेजो विस्तार्य स्वेन तेजसा सर्वं जगत् प्रकाशयति (च) एवं विद्युदादीन् (वज्रेण) किरणसमूहेन (हत्वा) (निः) निरन्तरम् (अपः) जलानि (ससर्ज) सृजति (अहन्) हन्ति (अहिम्) मेघम् (अभिनत्) भिनत्ति (रौहिणम्) रोहिण्यां प्रादुर्भूतम् (वि) (अहन्) हन्ति (व्यंसम्) विगता अंसा यस्य तम् (मघवा) सूर्यः (शचीभिः) कर्मभिः ॥ २ ॥
Connotation: - मनुष्यैरिदं द्रष्टव्यं प्रसिद्धो यः सूर्य्यलोकोऽस्ति स विदारणाकर्षणप्रकाशनादिकर्मभिर्वृष्टिं कृत्वा पृथिवीं धृत्वाऽव्यक्तपदार्थान् प्रकाश्य सर्वान् प्राणिनो व्यवहारयति स परमात्मनो रचनेन विना कदाचिदपि संभवितुं नार्हति ॥ २ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी हे पाहिले पाहिजे की, प्रसिद्ध जो सूर्यलोक आहे तो मेघांचे विदारण, गोलांचे आकर्षण व प्रकाश इत्यादी कार्यांनी जल, वृष्टी, पृथ्वीला धारण व अप्रकट अर्थात अंधकाराने व्यापलेले जे पदार्थ आहेत त्यांना प्रकाशित करून सर्व प्राण्यांना व्यवहारात चालवितो. तो परमात्म्याने निर्माण केल्याखेरीज उत्पन्न होऊ शकत नाही. ॥ २ ॥