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वि॒श्वाहेन्द्रो॑ अधिव॒क्ता नो॑ अ॒स्त्वप॑रिह्वृताः सनुयाम॒ वाज॑म्। तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥

English Transliteration

viśvāhendro adhivaktā no astv aparihvṛtāḥ sanuyāma vājam | tan no mitro varuṇo māmahantām aditiḥ sindhuḥ pṛthivī uta dyauḥ ||

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Pad Path

वि॒श्वाहा॑। इन्द्रः॒। अ॒धि॒ऽव॒क्ता। नः॒। अ॒स्तु॒। अप॑रिऽह्वृताः। स॒नु॒या॒म॒। वाज॑म्। तत्। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। म॒म॒ह॒न्ता॒म्। अदि॑तिः। सिन्धुः॑। पृ॒थि॒वी। उ॒त। द्यौः ॥ १.१०२.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:102» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:15» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (अपरिह्वृताः) आज्ञा को पाये हुए हम लोग जो (विश्वाहा) सब शत्रुओं को मारनेवाला (इन्द्रः) परमैश्वर्य्ययुक्त सभाध्यक्ष (नः) हम लोगों को (अधिवक्ता) यथावत् शिक्षा देनेवाला (अस्तु) हो, उसके लिये (वाजम्) अच्छे संस्कार किये हुए अन्न को (सनुयाम) देवें, जिससे (तत्) उसको (नः) हम लोगों के (मित्रः) मित्रजन (वरुणः) उत्तम गुणयुक्त (अदितिः) समस्त विद्वान् अन्तरिक्ष (सिन्धुः) समुद्र (पृथिवी) पृथिवी (उत) और (द्यौः) सूर्य्यलोक (मामहन्ताम्) बढ़ावें ॥ ११ ॥
Connotation: - सब सेवकों की यह रीति हो कि जब अपना स्वामी जैसी आज्ञा करे उसी समय उसको वैसे ही करें और जो समग्र विद्या पढ़ा हो उसीसे उपदेश सुनने चाहिये ॥ ११ ॥इस सूत्र में शाला आदि के अधिपति ईश्वर पढ़ानेवाले और सेनापति के गुणों के वर्णन से इस सूत्र के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ से एकता है, यह जानना चाहिये ॥ यह १०२ एकसौ दोवाँ सूक्त और १५ पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

Anvay:

अपरिह्वृताः वयं यो विश्वाहेन्द्रो नोऽअस्माकमधिवक्ताऽस्तु तस्मै वाजं सनुयाम येन तन्मित्रो वरुणोऽदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौर्नोऽस्मान्मामहन्ताम् ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (विश्वाहा) विश्वान्सर्वान् हन्ति सः (इन्द्रः) परमैश्वर्यः सभाध्यक्षः (अधिवक्ता) यथावदनुशासिता (नः) अस्माकम् (अस्तु) भवतु (अपरिह्वृताः) अपरिवर्जिताः (सनुयाम) दद्याम (वाजम्) सुसंस्कृतमन्नम् (तत्) (नः) अस्माकम् (मित्रः०) इति पूर्ववत् ॥ ११ ॥
Connotation: - सर्वेषां भृत्यानामियं रीतिः स्याद् यदा यादृशीमाज्ञां स्वस्वामी कुर्यात्तदैव साऽनुष्ठातव्या योऽखिलविद्यस्तस्मादेवोपदेशाः श्रोतव्या इति ॥ ११ ॥।अत्र शालाद्यध्यक्षेश्वराध्यापकसेनाधिपतीनां गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोद्धव्यम् ॥इति द्व्युत्तरशततमं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्व सेवकांची ही रीत असावी की जेव्हा आपला स्वामी जशी आज्ञा करतो त्यावेळी त्यांनी तसेच करावे व ज्याने संपूर्ण विद्या प्राप्त केलेली आहे, त्याच्याकडूनच उपदेश ऐकावा. ॥ ११ ॥