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स स॒व्येन॑ यमति॒ व्राध॑तश्चि॒त्स द॑क्षि॒णे संगृ॑भीता कृ॒तानि॑। स की॒रिणा॑ चि॒त्सनि॑ता॒ धना॑नि म॒रुत्वा॑न्नो भव॒त्विन्द्र॑ ऊ॒ती ॥

English Transliteration

sa savyena yamati vrādhataś cit sa dakṣiṇe saṁgṛbhītā kṛtāni | sa kīriṇā cit sanitā dhanāni marutvān no bhavatv indra ūtī ||

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Pad Path

सः। स॒व्येन॑। य॒म॒ति॒। व्राध॑तः। चि॒त्। सः। द॒क्षि॒णे। सम्ऽगृ॑भीता। कृ॒तानि॑। सः। की॒रिणा॑। चि॒त्। सनि॑ता। धना॑नि। म॒रुत्वा॑न्। नः॒। भ॒व॒तु॒। इन्द्रः॑। ऊ॒ती ॥ १.१००.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:100» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (सव्येन) सेना के दाहिनी ओर खड़ी हुई अपनी सेना से (व्राधतः) अत्यन्त बल बढ़े हुए शत्रुओं को (चित्) भी (यमति) ढङ्ग में चलाता है, वह उन शत्रुओं का जीतनेहारा होता है। जो (दक्षिणे) दाहिनी ओर में खड़ी हुई उस सेना से (संगृभीता) ग्रहण किये हुए सेना के अङ्गों तथा (कृतानि) किये हुए कामों को यथोचित नियम में लाता है (सः) वह अपनी सेना की रक्षा कर सकता है। जो (कीरिणा) शत्रुओं के गिराने के प्रबन्ध से (चित्) भी उनके (सनिता) अच्छी प्रकार इकठ्ठे किये हुए (धनानि) धनों को ले लेता है (सः) वह (मरुत्वान्) अपनी सेना में उत्तम-उत्तम वीरों को राखनेहारा (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापति (नः) हम लोगों के (ऊती) रक्षा आदि व्यवहारों के लिये (भवतु) हो ॥ ९ ॥
Connotation: - जो सेना की रचनाओं और सेना के अङ्गों की शिक्षा वा रक्षा के विशेष ज्ञान को तथा पूर्ण युद्ध की सामग्री को इकठ्ठा कर सकता है, वही शत्रुओं को जीत लेने से अपनी और प्रजा की रक्षा करने के योग्य है ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यः सव्येन स्वसेन्येन व्राधतश्चिद्यमति स विजयी जायते यो दक्षिणे संगृभीता कृतानि कर्माणि नियमयति स स्वसेनां रक्षितुं शक्नोति यः कीरिणा चित् शत्रुभिः सनिता धनानि स्वीकरोति स मरुत्वानिन्द्रः सेनापतिर्न ऊती भवतु ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (सः) (सव्येन) सेनाया वामभागेन (यमति) नियमयति। अत्र छन्दस्युभयथेति शप आर्द्धधातुकत्वाण्णिलोपः। (व्राधतः) अतिप्रवृद्धान् शत्रून् (चित्) अपि (सः) (दक्षिणे) दक्षिणभागस्थेन सैन्येन। अत्र सुपां सुलुगिति तृतीयास्थाने शेआदेशः। (संगृभीता) सम्यग्गृहीतानि सेनाङ्गानि। अत्र ग्रहधातोर्हस्य भत्वम्। अत्र सायणाचार्येण सुबन्तं तिङन्तं साधितमतोऽशुद्धमेव निघाताभावात्। (कृतानि) कर्माणि (सः) (कीरिणा) शत्रूणां विक्षेपकेन प्रबन्धेन (चित्) अपि (सनिता) संभक्तानि। अत्र वनसन संभक्ताविति धातोर्बाहुलकात्तन्प्रत्ययः। (धनानि) (मरुत्वान्नो०) इति पूर्ववत् ॥ ९ ॥
Connotation: - यः सेनाव्यूहान् सेनाङ्गशिक्षारक्षणविज्ञानं पूर्णां युद्धसामग्रीञ्चार्जितुं शक्नोति स एव शत्रुपराजयेन विजये प्रजारक्षणे च योग्यो भवति ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो सेनेची रचना व सेनेच्या अंगांचे शिक्षण व रक्षणाचे विशेष ज्ञान तसेच पूर्ण युद्धसाहित्य एकत्रित करू शकतो. तोच शत्रूंना जिंकून आपले व प्रजेचे रक्षण करण्यास समर्थ असतो. ॥ ९ ॥