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दि॒वो न यस्य॒ रेत॑सो॒ दुघा॑ना॒: पन्था॑सो॒ यन्ति॒ शव॒साप॑रीताः। त॒रद्द्वे॑षाः सास॒हिः पौंस्ये॑भिर्म॒रुत्वा॑न्नो भव॒त्विन्द्र॑ ऊ॒ती ॥

English Transliteration

divo na yasya retaso dughānāḥ panthāso yanti śavasāparītāḥ | taraddveṣāḥ sāsahiḥ pauṁsyebhir marutvān no bhavatv indra ūtī ||

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Pad Path

दि॒वः। न। यस्य॑। रेत॑सः॑। दुघा॑नाः। पन्था॑सः। यन्ति॑। शव॑सा। अप॑रिऽइताः। त॒रत्ऽद्वे॑षाः। स॒स॒हिः। पौंस्ये॑भिः। म॒रुत्वा॑न्। नः॒। भ॒व॒तु॒। इन्द्रः॑। ऊ॒ती ॥ १.१००.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:100» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे दोनों कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यस्य) जिस ईश्वर वा सभाध्यक्ष वा उपदेश करनेवाले विद्वान् के (दिवः) सूर्य्यलोक के (न) समान (रेतसः) पराक्रम की (शवसा) प्रबलता से (अपरीताः) न छोड़े हुए (दुधानाः) व्यवहारों को पूर्ण करनेवाला (तरद्द्वेषाः) जिनमें विरोधों के पार हों वे (पन्थासः) मार्ग (यन्ति) प्राप्त होते और जाते हैं वा जो (पौंस्येभिः) बलों के साथ वर्त्तमान (सासहिः) अत्यन्त सहन करनेवाला (मरुत्वान्) जिसकी सृष्टि में प्रशंसित प्रजा है वह (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् परमेश्वर वा सभाध्यक्ष (नः) हम लोगों के (ऊती) रक्षा आदि व्यवहारों के लिये (भवतु) हो ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। जैसे सूर्य्य के प्रकाश से समस्त मार्ग अच्छे देखने और गमन करने योग्य वा डाकू, चोर और काँटों से यथायोग्य अप्रतीत होते हैं, वैसे वेदद्वारा परमेश्वर वा विद्वान् के मार्ग अच्छे प्रकाशित होते हैं। निश्चय है कि उनमें चले विना कोई मनुष्य वैर आदि दोषों से अलग नहीं हो सकता, इससे सबको चाहिये कि इन मार्गों से नित्य चलें ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

यस्य दिवो नेव रेतसः शवसाऽपरीता दुधानास्तरद्द्वेषाः पन्थासो यन्ति पौंस्येभिः सासहिर्मरुत्वानस्ति स इन्द्रो न ऊती भवतु ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (दिवः) प्रकाशकर्मणः सूर्य्यलोकस्य (न) इव (यस्य) जगदीश्वरस्याऽध्यापकस्यानूचानविदुषो वा (रेतसः) वीर्यस्य (दुधानाः) प्रपूरकाः। अत्र वर्णव्यत्ययेन हस्य घः। (पन्थासः) मार्गाः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति गच्छन्ति वा (शवसा) बलेन (अपरीताः) अवर्जिताः (तरद्द्वेषाः) तरन्ति द्वेषान् येषु ते (सासहिः) अतिशयेन सहनशीलः। सहिवहिचलिपतिभ्यो यङन्तेभ्यः किकिनौ वक्तव्यौ। अ० ३। २। १७१। इति यङन्तात्सहधातोः किः प्रत्ययः। (पौंस्येभिः) बलैः सह वर्त्तमानाः। पौंस्यानीति बलनाम०। निघं० २। ९। (मरुत्वान्नो०) इति पूर्ववत् ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यस्य प्रकाशेन सर्वे मार्गा सुदृश्या गमनीया अदृश्यदस्युचोरकण्टका भवन्ति तथैव वेदद्वारा परमेश्वरस्य विदुषो वा मार्गाः सुप्रकाशिता भवन्ति न किल तेषु गमनेन विना कश्चिदपि मनुष्यः द्वेषादिदोषेभ्यः पृथग्भवितुं शक्नोति तस्मात्सर्वैरेतन्मार्गैर्नित्यं गन्तव्यम् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेष व उपमालंकार आहेत. जसा सूर्यप्रकाशात संपूर्ण मार्ग चांगल्या दृश्य स्वरूपात व गमन करण्यायोग्य असतो, चोर व कंटक यांच्यापासून सुरक्षित असतो, तसा वेदाद्वारे परमेश्वर किंवा विद्वानांचा मार्ग चांगला प्रकाशित होतो. निश्चयाने हे सांगता येईल की त्याच मार्गाने गेल्याखेरीज कोणी मनुष्य वैर इत्यादी दोषांपासून पृथक होऊ शकत नाही. त्यासाठी सर्वांनी या मार्गाने सदैव चालावे. ॥ ३ ॥