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रो॒हिच्छ्या॒वा सु॒मदं॑शुर्लला॒मीर्द्यु॒क्षा रा॒य ऋ॒ज्राश्व॑स्य। वृष॑ण्वन्तं॒ बिभ्र॑ती धू॒र्षु रथं॑ म॒न्द्रा चि॑केत॒ नाहु॑षीषु वि॒क्षु ॥

English Transliteration

rohic chyāvā sumadaṁśur lalāmīr dyukṣā rāya ṛjrāśvasya | vṛṣaṇvantam bibhratī dhūrṣu ratham mandrā ciketa nāhuṣīṣu vikṣu ||

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Pad Path

रो॒हित्। श्या॒वा। सु॒मत्ऽअं॑शुः। ल॒ला॒मीः। द्यु॒क्षा। रा॒ये। ऋ॒ज्रऽअश्व॑स्य। वृष॑ण्ऽवन्तम्। बिभ्र॑ती। धूः॒ऽसु। रथ॑म्। म॒न्द्रा। चि॒के॒त॒। नाहु॑षीषु। वि॒क्षु ॥ १.१००.१६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:100» Mantra:16 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब शिल्पी जनों का सेनादिकों में अच्छे प्रकार युक्त किया हुआ अग्नि कैसा होता है और क्या करता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (ऋज्राश्वस्य) सीधी चाल से चले हुए जिसके घोड़े वेगवाले उस सभा आदि के अधीश का सम्बन्ध करनेवाले शिल्पियों को (सुमदंशुः) जिसका उत्तम जलाना (ललामीः) प्रशंसित जिसमें सौन्दर्य्य (द्युक्षा) और जिसका प्रकाश ही निवास है वह (रोहित्) नीचे से लाल (श्यावा) ऊपर से काली अग्नि की ज्वाला (धूर्षु) लोहे की अच्छी-अच्छी बनी हुई कलाओं में प्रयुक्त की गई (वृषण्वन्तम्) वेगवाले (रथम्) विमान आदि यान समूह को (बिभ्रती) धारण करती हुई (मन्द्रा) आनन्द की देनेहारी (नाहुषीषु) मनुष्यों के इन (विक्षु) सन्तानों के निमित्त (राये) धन की प्राप्ति के लिये वर्त्तमान है, उसको जो (चिकेत) अच्छे प्रकार जाने, वह धनी होता है ॥ १६ ॥
Connotation: - जब विमानों के चलाने आदि कार्य्यों में इन्धनों से अच्छे प्रकार युक्त किया अग्नि जलता है, तब उसके दो ढङ्ग के रूप देख पड़ते हैं-एक उजेला लिये हुए दूसरा काला। इसीसे अग्नि को श्यामकर्णाश्व कहते हैं। जैसे घोड़े के शिर पर कान दीखते हैं, वैसे अग्नि के शिर पर श्याम कज्जल की चुटेली होती है। यह अग्नि कामों में अच्छे प्रकार जोड़ा हुआ बहुत प्रकार के धन को प्राप्त कराकर प्रजाजनों को आनन्दित करता है ॥ १६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ शिल्पिभिः सेनादिषु प्रयुक्तोऽग्निः कथम्भूतः सन्किं करोतीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

या ऋज्राश्वस्य सम्बन्धिभिः शिल्पिभिः सुमदंशुर्ललामीर्द्युक्षा रोहिच्छ्यावा धूर्षु संप्रयुक्ता ज्वाला वृषण्वन्तं रथं बिभ्रती मन्द्रा नाहुषीषु विक्षु राये वर्त्तते, तां यश्चिकेत स आढ्यो जायते ॥ १६ ॥

Word-Meaning: - (रोहित्) अधस्ताद्रक्तवर्णा (श्यावा) उपरिष्टाच्छ्यामवर्णा ज्वाला (सुमदंशुः) शोभनोंऽशुर्ज्वलनं यस्याः सा (ललामीः) शिरोवदुपरिभागः प्रशस्तो यस्याः सा (द्युक्षा) दिवि प्रकाशे निवासो यस्याः सा। अत्र क्षि निवासगत्योरित्यस्मादौणादिको हः प्रत्ययः। (राये) धनप्राप्तये (ऋज्राश्वस्य) ऋज्रा ऋतुगामिनोऽश्वा वेगवन्तो यस्य तस्य सभाद्यध्यक्षस्य (वृषण्वन्तम्) वेगवन्तम् (बिभ्रती) (धूर्षु) अयःकाष्ठविशेषासु कलासु (रथम्) विमानादियानसमूहम् (मन्द्रा) आनन्दप्रदा (चिकेत) विजानीयाम् (नाहुषीषु) नहुषाणां मनुष्याणामिमास्तासु (विक्षु) प्रजासु ॥ १६ ॥
Connotation: - यदा विमानचालनादिकार्य्येष्विन्धनैः संप्रयुक्तोऽग्निः प्रज्वलति तदा द्वे रूपे लक्ष्येते। एकं भास्वरं द्वितीयं श्यामञ्च। अतएवाग्नेः श्यामकर्णाश्व इति संज्ञा वर्त्तते। यथाऽश्वस्य शिरस उपरि कर्णौ दृश्यते तथाऽग्नेरुपरि श्यामा कज्जलाख्या शिखा भवति। सोऽयं कार्य्येषु सम्यक् प्रयुक्तो बहुविधं धनं प्रापय्य प्रजा आनन्दिताः करोति ॥ १६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा विमान चालविण्याच्या कार्यात इंधन म्हणून संयुक्त केलेला अग्नी प्रज्वलित होतो, तेव्हा त्याची दोन रूपे असतात. एक प्रकाशमय व दुसरा अंधकारमय. त्यामुळे अग्नीला श्यामकर्णाश्व म्हणतात. जसे घोड्याच्या डोक्यावर कान दिसतात तसे अग्नीच्या डोक्यावर काळ्या रंगाची ज्वाला असते. हा अग्नी कामात चांगल्या प्रकारे प्रयुक्त होऊन पुष्कळ प्रकारचे धन प्राप्त करून देऊन प्रजेला आनंदित करतो. ॥ १६ ॥