Go To Mantra

न यस्य॑ दे॒वा दे॒वता॒ न मर्ता॒ आप॑श्च॒न शव॑सो॒ अन्त॑मा॒पुः। स प्र॒रिक्वा॒ त्वक्ष॑सा॒ क्ष्मो दि॒वश्च॑ म॒रुत्वा॑न्नो भव॒त्विन्द्र॑ ऊ॒ती ॥

English Transliteration

na yasya devā devatā na martā āpaś cana śavaso antam āpuḥ | sa prarikvā tvakṣasā kṣmo divaś ca marutvān no bhavatv indra ūtī ||

Mantra Audio
Pad Path

न। यस्य॑। दे॒वाः। दे॒वता॑। न। मर्ता॑। आपः॑। च॒न। शव॑सः। अन्त॑म्। आ॒पुः। सः। प्र॒ऽरिक्वा॑। त्वक्ष॑सा। क्ष्मः। दि॒वः। च॒। म॒रुत्वा॑न्। नः॒। भ॒व॒तु॒। इन्द्रः॑। ऊ॒ती ॥ १.१००.१५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:100» Mantra:15 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:15


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इस समस्त प्रजा का करनेवाला ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यस्य) जिस परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर के (शवसः) बल की (अन्तम्) अवधि को (देवता) दिव्य उत्तम जनों में (देवाः) विद्वान् लोग (न) नहीं (मर्त्ताः) साधारण मनुष्य (न) नहीं (चन) तथा (अपः) अन्तरिक्ष वा प्राण भी (आपुः) नहीं पाते, जो (त्वक्षसा) अपने बलरूप सामर्थ्य से (क्ष्मः) पृथिवी (दिवः) सूर्य्यलोक तथा (च) और लोकों को (प्ररिक्वा) रच के व्याप्त हो रहा है (सः) वह (मरुत्वान्) अपनी प्रजा को प्रशंसित करनेवाला (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् परमेश्वर (न) हम लोगों के (ऊती) रक्षा आदि व्यवहार के लिये निरन्तर उद्यत (भवतु) होवे ॥ १५ ॥
Connotation: - क्या अनन्त गुण, कर्म, स्वभाववाले उस परमेश्वर का पार कोई ले सकता है कि जो अपने सामर्थ्य से ही प्रकृतिरूप अतिसूक्ष्म सनातन कारण से सब पदार्थों को स्थूलरूप उत्पन्न कर उनकी पालना और प्रलय के समय सबका विनाश करता है, वह सबके उपासना करने के योग्य क्यों न होवे ? ॥ १५ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेतस्याः सर्वप्रजायाः कर्त्तेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यस्येन्द्रस्य जगदीश्वरस्य शवसोऽन्तं देवता देवा न मर्त्ता नापश्च नापुः। यस्त्वक्षसा क्ष्मो दिवश्चान्यांश्च लोकान् प्ररिक्वा स मरुत्वानिन्द्रो न ऊती भवतु ॥ १५ ॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (यस्य) इन्द्रस्य परमैश्वर्यवतो जगदीश्वरस्य (देवाः) विद्वांसः (देवता) दिव्यजनानां मध्ये। निर्धारणेऽत्र षष्ठी सुपां सुलुगित्यामो लुक् च। (न) (मर्त्ताः) साधारणा मनुष्याः (आपः) अन्तरिक्षं प्राणा वा (चन) अपि (शवसः) बलस्य (अन्तम्) सीमानम् (आपुः) प्राप्नुवन्ति (सः) (प्ररिक्वा) यः सर्वाः प्रजाः प्रकृष्टतया निर्माय व्याप्तवान् (त्वक्षसा) स्वेन बलेन सामर्थ्येन। त्वक्ष इति बलना०। निघं० २। ९। (क्ष्मः) पृथिवीः (दिवः) सूर्यादिप्रकाशकलोकान् (च) एतद्भिन्नलोकसमुच्चये (मरुत्वान्नो०) इति पूर्ववत् ॥ १५ ॥
Connotation: - किमनन्तगुणकर्मस्वभावस्य तस्य परमात्मनोऽन्तं ग्रहीतुं कश्चिदपि शक्नोति यः स्वसामर्थ्येनैव प्रकृत्याख्यात् परमसूक्ष्मात् सनातनात् कारणात्सर्वान्पदार्थान् संहत्य संरक्ष्य प्रलये छिनत्ति स सर्वैः कथं नोपासनीय इति ॥ १५ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - अनंत गुण, कर्म, स्वभावाच्या परमेश्वराचा अंत कुणी जाणू शकतो काय? जो आपल्या सामर्थ्यानेच प्रकृतिरूपी अतिसूक्ष्म सनातन कारणाने सर्व पदार्थांना स्थूलरूपाने उत्पन्न करून त्यांचे पालन व प्रलयाच्या वेळी सर्वांचा नाश करतो, तो सर्वांनी उपासना करण्यायोग्य का असणार नाही? ॥ १५ ॥