जीवात्मा और परमात्मा के लक्षणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (गायत्रेण) स्तुति योग्य गुण से वह [योगी] (अर्कम्) पूजनीय [परमेश्वर] को (प्रति) प्रतीत के साथ (मिमीते) बोलता है, (अर्केण) पूजनीय ब्रह्म के साथ (साम) मोक्षविद्या को, (त्रैष्टुभेन) तीन [कर्म उपासना, ज्ञान] से स्तुति किये गये [ब्रह्म] के साथ (वाकम्) वेदवाक्य को [बोलता है]। (सप्त) सात [दो कान, दो नथने, दो नेत्र और एक मुख] से सम्बन्धवाली [उसी की] (वाणीः) वाणियाँ (द्विपदा) दोपाये [मनुष्य आदि] और (चतुष्पदा) चौपाये [गौ आदि प्राणी] के साथ [वर्तमान] (वाकम्) वेदवाणी के स्वामी [परमेश्वर] को (अक्षरेण) सर्वव्यापक (वाकेन) वेदवाक्य के साथ (मिमते) उच्चारती हैं ॥२॥
Connotation: - जिज्ञासु तत्त्वदर्शी ब्रह्मचारी उत्तम-उत्तम गुणों के द्वारा ब्रह्म से विद्या और विद्या से ब्रह्म को साक्षात् करके मोक्ष को प्राप्त होकर संसार में वेद द्वारा परमात्मा का उपदेश करता है ॥२॥