मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (श्यामः) चलनेवाला [प्राणवायु] (च च) और (शबलः) जानेवाला [अपानवायु] (त्वा) तुझको (मा) न [छोड़े], (यौ) जो दोनों [प्राण और अपान] (यमस्य) नियन्ता मनुष्य के (प्रेषितौ) भेजे हुए, (पथिरक्षी) मार्गरक्षक (श्वानौ) दो कुत्तों [के समान हैं]। (अर्वाङ्) समीप (आ इहि) आ, (मा वि दीध्यः) विरुद्ध मत क्रीड़ा कर, (इह) यहाँ पर (पराङ्मनाः) उदास मन होकर (मा तिष्ठः) मत ठहर ॥९॥
Connotation: - मन्त्र के प्रथम पाद में [छोड़े] पद अध्याहार है। मनुष्य प्राण, और अपान द्वारा बल पराक्रम स्थिर रखकर कभी दीन न होवें। प्राण और अपान शरीर की इस प्रकार रक्षा करते हैं, जैसे कुत्ते मार्ग में अपने स्वामी की ॥९॥ यजुर्वेद ३४।५५। में वर्णन है−“तत्र जागृतो अस्वप्नजौ सत्रसदौ च (देवौ) वहाँ पर दो न सोनेवाले और बैठक [शरीर] में बैठनेवाले, चलने फिरनेवाले [प्राण और अपान] जागते हैं ॥