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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (देवाः) हे विजय चाहनेवाले पुरुषो ! (अयम्) यह [शूर पुरुष] (इह) यहाँ [धर्म्मात्माओं में] (एव) ही (अस्तु) रहे, (अयम्) यह (अमुत्र) वहाँ [दुष्टों में] (इतः) यहाँ से [सत्समाज से] (मा गात्) न जावे। (इमम्) इस [पुरुष] को (सहस्रवीर्येण) सहस्रों प्रकार के सामर्थ्य के साथ (मृत्योः) मृत्यु से (उत्) भले प्रकार (पारयामसि) हम पार लगाते हैं ॥१८॥
Connotation: - मनुष्य एक दूसरे को दुष्कर्मों से बचाकर धर्म में प्रवृत्त कर विज्ञान शिल्प आदि द्वारा अनेक प्रकार बल बढ़ाकर मृत्यु अर्थात् दरिद्रता आदि दुःखों से सुरक्षित रहें ॥१८॥
Footnote: १८−(अयम्) शूरपुरुषः (देवाः) हे विजिगीषवः (इह) धर्मात्मसु (एव) निश्चयेन (अस्तु) भवतु (मा गात्) न गच्छेत् (अमुत्र) तत्र। दुष्टेषु (इतः) अमरलोकात्। सत्समाजात् (इमम्) सत्पुरुषम् (सहस्रवीर्येण) अपरिमितसामर्थ्येन (मृत्योः) दरिद्रतादिदुःखात् (उत्) उत्कर्षेण (पारयामसि) पार कर्मसमाप्तौ। यद्वा, पॄ पालनपूरणयोः। पारयामः। तारयामः। पालयामः ॥