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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
काम और क्रोध की शान्ति का उपदेश।
Word-Meaning: - (गावः) गौएँ (सदने) बैठक में (असदन्) बैठ गयी हैं, (वयः) पक्षी ने (वसतिम्) घोंसले में (अपप्तत्) बसेरा लिया है। (पर्वताः) पहाड़ (आस्थाने) विश्राम स्थान पर (अस्थुः) ठहर गये हैं, (वृक्कौ) दोनों रोक डालनेवाले वा रोकने योग्य [काम क्रोध] को (स्थाम्नि) स्थान पर (अतिष्ठिपम्) मैंने ठहरा दिया है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में (गृध्रौ) काम क्रोध का अर्थ गत सूक्त से आता है। जैसे गौएँ आदि अपने-अपने स्थान पर विश्राम करते हैं, ऐसे ही मनुष्य काम क्रोध को विद्या आदि से शान्त करके प्रसन्न रहें ॥१॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध कुछ भेद से आ चुका है-अ० ६।७७।१ ॥
Footnote: १−(असदन्) षद्लृ-लुङ्। निषण्णा अभूवन् (गावः) धेनवः (सदने) षद्लृ-ल्युट्। स्थाने (अपप्तत्) अ० ५।३०।९। अगमत् (वसतिम्) वहिवस्यर्तिभ्यश्चित्। उ० ४।६०। वस निवासे-अति। नीडम् (वयः) वी गतौ असुन्। पक्षी (वृक्कौ) सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। इति वृजी वर्जने कक्। वर्जकौ वर्जनीयौ वा कामक्रोधौ गतमन्त्रात्। अन्यद् गतम्-अ० ६।७७।१ ॥