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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
विद्वानों की संगति का उपदेश।
Word-Meaning: - (दिव्याः) दिव्य गुण स्वभाववाले (अपः) जलों [के समान शुद्ध करनेवाले विद्वानों] को (अचायिषम्) मैंने पूजा है (रसेन) पराक्रम से (सम् अपृक्ष्महि) हम संयुक्त हुए हैं। (अग्ने) हे विद्वान् ! (पयस्वान्) गतिवाला मैं (आ अगमम्) आया हूँ, (तम्) उस (मा) मुझको (वर्चसा) [वेदाध्ययन आदि के] तेज से (सम् सृज) संयुक्त कर ॥१॥
Connotation: - मनुष्य उद्योग करके विद्वानों से और वेद आदि शास्त्रों से विद्या प्राप्त करके यशस्वी होवें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−२०।२२ ॥
Footnote: १−(अपः) जलानि। जलानीव शोधकान् विदुषः (दिव्याः) दिव्यगुणस्वभावाः (अचायिषम्) चायृ पूजानिशामनयोः-लुङ्। पूजितवानस्मि (रसेन) पराक्रमेण (सम् अपृक्ष्महि) पृची सम्पर्के-लुङ्। संगता अभूम (पयस्वान्) पय गतौ-असुन्। गतिमान्। उद्योगी (अग्ने) हे विद्वन् (आ अगमम्) गमेर्लुङ्। आगतोऽस्मि (तम्) तादृशम् (मा) माम् (संसृज) संयोजय (वर्चसा) ब्रह्मवर्चसेन ॥