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अपे॒ह्यरि॑र॒स्यरि॒र्वा अ॑सि वि॒षे वि॒षम॑पृक्था वि॒षमिद्वा अ॑पृक्थाः। अहि॑मे॒वाभ्यपे॑हि॒ तं ज॑हि ॥

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अप । इहि । अरि: । असि । अरि: । वै । असि । विषे । विषम्। अपृक्था: । विषम् । इत् । वै । अपृक्था: । अहिम् । एव । अभिऽअपेहि । तम् । जहि ॥९३.१॥

Atharvaveda » Kand:7» Sukta:88» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

कुसंस्कार के नाश का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे विष !] (अप इहि) चला जा, (अरिः असिः) तू शत्रु है, (अरिः) तू शत्रु (वै) ही (असि) है। (विषे) विष में (विषम्) विष को (अपृक्थाः) तूने मिला दिया है, (विषम्) विष को (इत्) ही (वै) हाँ (अपृक्थाः) तूने मिला दिया है, (अहिम्) साँप के पास (एव) ही (अभ्यपेहि) तू चला जा, (तम्) उसको (जहि) मार डाल ॥१॥
Connotation: - जैसे विष में विष मिलने से अधिक प्रचण्ड हो जाता है, वैसे ही मनुष्य की इन्द्रियाँ एक तो आप ही पाप की ओर चलायमान होती हैं, फिर कुसंस्कार वा कुसंगति पाकर अधिक प्रचण्ड विषैली हो जाती हैं। जैसे वैद्य विष को विष से मारता है, वैसे ही विद्वान् जितेन्द्रियता से इन्द्रिय दोष को मिटावे ॥१॥
Footnote: १−(अपेहि) अपगच्छ (अरिः) हिंसकः शत्रुः (असि) (वै) खलु (असि) (विषे) (विषम्) (अपृक्थाः) पृची सम्पर्के लुङ्। संयोजितवानसि (इत्) एव (अहिम्) अ० २।५।५। आहन्तारं सर्पम् (एव) (अभ्यपेहि) अभिलक्ष्य समीपं गच्छ (तम्) अहिम् (जहि) मारय। अन्यद् गतम् ॥