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सोम॑स्यांशो युधां प॒तेऽनू॑नो॒ नाम॒ वा अ॑सि। अनू॑नं दर्श मा कृधि प्र॒जया॑ च॒ धने॑न च ॥

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सोमस्य । अंशो इति । युधाम् । पते । अनून: । नाम । वै । असि । अनूनम् । दर्श । मा । कृधि । प्रऽजया । च । धनेन । च ॥८६.३॥

Atharvaveda » Kand:7» Sukta:81» Paryayah:0» Mantra:3


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (सोमस्य) हे अमृत के (अंशो) बाँटनेवाले ! (युधाम्) हे युद्धों के (पते) स्वामी ! (वै) निश्चय करके तू (अनूनः) न्यूनतारहित [सम्पूर्ण] (नाम) प्रसिद्ध (असि) है। (दर्श) हे दर्शनीय ! (मा) मुझको (प्रजया) प्रजा से (च च) और (धनेन) धन से (अनूनम्) सम्पूर्ण (कृधि) कर ॥३॥
Connotation: - पूर्ण चन्द्रमा अमृत का बाँटनेवाला इस लिये है कि उसकी किरणों से पार्थिव पदार्थों और प्राणियों में पोषण शक्ति पहुँचती है। और युद्धों का स्वामी इस कारण है कि पौर्णमासी को पार्थिव समुद्र का जल चन्द्रमा की ओर लहराता है, अथवा उल्लेखादि युद्धों अर्थात् ग्रह और तारा गणों के परस्पर निकट हो जाने वा टकरा जाने का काल चन्द्रमा की गति से निर्णय किया जाता है−देखो सूर्यसिद्धान्त, अध्याय ७। श्लोक १८-२३। मनुष्य पौष्टिक पदार्थों से उपकार लेकर प्रजावान् और धनवान् होवें ॥३॥
Footnote: ३−(सोमस्य) अमृतस्य। जीवनसाधनस्य (अंशो) अंशुः शमष्टमात्रो भवत्यननाय शं भवतीति वा-निरु० २।५। मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। अंश विभाजने-कु। अंशुः=सोमो विभागो विभक्ता वा। हे विभाजयितः (युधाम्) युद्धानां पार्थिवजलस्याकर्षणानाम्, यद्वा ग्रहतारागणानामुल्लेखादियुद्धानाम्, सूर्यसिद्धान्ते-अ० ७। श्लोक १८-२३ (पते) स्वामिन् (अनूनः) ऊन परिहाणे-क। न्यूनतारहितः। सम्पूर्णकलः (नाम) प्रसिद्धौ (वै) निश्चयेन (असि) (अनूनम्) सम्पूर्णं समृद्धम् (दर्श) दृश−घञ्। हे दर्शनीय। पूर्णचन्द्र (मा) माम् (कृधि) कुरु (प्रजया) सन्ततिभृत्यादिना (च च) समुच्चये (धनेन) ॥