मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे प्रजा, सब स्त्री-पुरुषो !] (सूयवसात्) सुन्दर अन्न आदि भोगनेवाली और (भगवती) बहुत ऐश्वर्यवाली (हि) ही (भूयाः) हो, (अध) फिर (वयम्) हमलोग (भगवन्तः) बड़े ऐश्वर्यवाले (स्याम) होवें। (अघ्न्ये) हे हिंसा न करनेवाली प्रजा ! (विश्वदानीम्) समस्त दानों की क्रिया का (आचरन्ती) आचरण करती हुई तू [हिंसा न करनेवाली गौ के समान] (तृणम्) घास [अल्प मूल्य पदार्थ] को (अद्धि) खा और (शुद्धम्) शुद्ध (उदकम्) जल को (पिब) पी ॥११॥
Connotation: - जैसे गौ अल्प मूल्य घास खाकर और शुद्ध जल पीकर दूध घी आदि देकर उपकार करती है, वैसे ही मनुष्य थोड़े व्यय से शुद्ध आहार-विहार करके संसार का सदा उपकार करें ॥११॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।१६४।४० ॥ इति षष्ठोऽनुवाकः ॥