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विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे। इन्द्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑ ॥

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विष्णो: । कर्माणि । पश्यत । यत: । व्रतानि । पस्पशे । इन्द्रस्य । युज्य: । सखा ॥२७.६॥

Atharvaveda » Kand:7» Sukta:26» Paryayah:0» Mantra:6


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

व्यापक ईश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (विष्णोः) सर्वव्यापक विष्णु के (कर्माणि) कर्मों [जगत् का बनाना, पालन, प्रलय आदि] को (पश्यत) देखो, (यतः) जिससे उसने (व्रतानि) व्रतों [सब के कर्त्तव्य कर्मों] को (पस्पशे) बाँधा है। (युज्यः) वह योग्य [अथवा सब से संयोग रखनेवाले दिशा, काल, आकाश आदि में रहनेवाला] परमेश्वर (इन्द्रस्य) जीव का (सखा) सखा है ॥६॥
Connotation: - जिस परमेश्वर ने संसार रचकर सबको नियम में बाँधा है, वही सब में रमकर सबका हितकारी है ॥६॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।२२।१८; यजु०-६।४, १३।३३; और साम–० उ०-८।२।५ ॥
Footnote: ६−(विष्णोः) व्यापकस्य (कर्माणि) जगदुत्पत्तिस्थितिसंहारादीनि (पश्यत) संप्रेक्षध्वम् (यतः) येन (व्रतानि) कर्त्तव्यकर्माणि (पस्पशे) स्पश बन्धनस्पर्शनयोः-लिट्। बद्धवान्। नियमितवान् (इन्द्रस्य) जीवस्य (युज्यः) युज-क्यप्, योग्यः। यद्वा। युज-क्विप्, भवे यत्। युञ्जन्ति व्याप्त्या सर्वान् पदार्थान् ते युजो दिक्कालाकाशादयस्तत्र भवः (सखा) मित्रम् ॥