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इ॒दं विष्णु॒र्वि च॑क्रमे त्रे॒धा नि द॑धे प॒दा। समू॑ढमस्य पांसु॒रे ॥

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इदम् । विष्णु: । वि । चक्रमे । त्रेधा । नि । दधे । पदा । सम्ऽऊढम् । अस्य । पांसुरे ॥२७.४॥

Atharvaveda » Kand:7» Sukta:26» Paryayah:0» Mantra:4


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

व्यापक ईश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (विष्णुः) विष्णु सर्वव्यापी भगवान् ने (समूढम्) आपस में एकत्र किये हुए वा यथावत् विचारने योग्य (इदम्) इस जगत् को (वि चक्रमे) पराक्रमयुक्त [शरीरवाला] किया है, उसने (अस्य) इस जगत् के (पदा) स्थिति और गति के कर्मों को (त्रेधा) तीन प्रकार (पांसुरे) परमाणुओंवाले अन्तरिक्ष में (नि दधे) स्थिर किया है ॥४॥
Connotation: - परमेश्वर ने इस जगत् को परमाणुओं से रचकर उत्पत्ति, स्थिति प्रलय द्वारा पृथिवी, अन्तरिक्ष और द्यु लोक, अर्थात् नीचे, मध्यम और ऊँचे स्थानों में धारण किया है ॥४॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।२२।१७; यजु० ५।१५, और साम० पू० ३।३।९। और उ० ८।२।८। भगवान् यास्क ने निरु० १२।१८, १९ में भी इस मन्त्र की व्याख्या की है ॥
Footnote: ४−(इदम्) परिदृश्यमानं जगत् (विष्णुः) व्यापकः परमेश्वरः (वि चक्रमे) विक्रान्तं पराक्रमयुक्तं सशरीरं कृतवान् (त्रेधा) त्रिप्रकारम् (निदधे) नियमेन स्थापयामास (पदा) पद स्थैर्ये गतौ च-अच्। स्थितिगतिकर्माणि (समूढम्) सम्+वह प्रापणे, ऊह वितर्के वा-क्त राशीकृतम्। सम्यग् वितर्कणीयमनुमीयं जगत् (अस्य) जगतः (पांसुरे) नगपांसुपाण्डुभ्यश्चेति वक्तव्यम्। वा० पा० ५।२।१०७। इति पांसु-रो मत्वर्थे। पांसुभी रजोभिः परमाणुभिर्युक्तोऽन्तरिक्षे ॥