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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (अनुमते) हे अनुमति ! [अनुकूलबुद्धिः] (त्वम्) तू (इत्) अवश्य [हमारी प्रार्थना] (अनु मंससे) सदा मानती रहे, (च) और (नः) हमारे लिये (शम्) कल्याण (कृधि) कर। (हव्यम्) ग्रहणयोग्य (आहुतम्) यथावत् दिया पदार्थ (जुषस्व) स्वीकार कर, (देवि) हे देवी ! (नः) हमें (प्रजाम्) सन्तान भृत्य आदि (ररास्व) दे ॥२॥
Connotation: - मनुष्य उत्तम बुद्धि द्वारा पथ्य कुपथ्य विचार कर युक्त आहार-विहार करके उत्तम सन्तान और भृत्य आदि पाकर सुख भोगें ॥२॥ इस मन्त्र का पूर्वार्ध कुछ भेद से यजु० में है−३४।८ ॥
Footnote: २−(अनु) निरन्तरम् (इत्) एव (अनुमते)-म० १। अनुकूलबुद्धे (त्वम्) (मंससे) मन ज्ञाने अवबोधने च, लेट्। सिब्बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। इत्यट्। अवमन्येथाः (शम्) कल्याणम् (च) (नः) अस्मभ्यम् (जुषस्व) स्वीकुरु (हव्यम्) ग्राह्यम् (आहुतम्) समन्तात् समर्पितम् (प्रजाम्) सन्तानभृत्यादिरूपाम् (देवि) दिव्यगुणे (ररास्व) रातेः शपः श्लुः, आत्मनेपदं च। देहि ॥