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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (अनुमतिः) अनुमति, अनुकूल बुद्धि (अद्य) आज (नः) हमारे (यज्ञम्) संगति व्यवहार को (देवेषु) विद्वानों में (अनु मन्यताम्) निरन्तर माने। (च) और (अग्निः) अग्नि [पराक्रम] (मम दाशुषे) मुझ दाता के लिये (हव्यवाहनः) ग्राह्य पदार्थों का पहुँचानेवाला (भवताम्) होवे ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य धार्मिक व्यवहारों में अनुकूल बुद्धिवाले और पराक्रमी होते हैं, वे ही उत्तम पदार्थों को पाकर सुखी होते हैं ॥१॥ निरुक्त ११।२९। के अनुसार (अनुमति) पूर्णमासी का नाम है। अर्थात् हमारा समय पौर्णमासी के समान पुष्टि और हर्ष करनेवाला हो ॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है-अ० ३४।९ ॥
Footnote: १−(अनु) निरन्तरम् (अद्य) अस्मिन् दिने (नः) अस्माकम् (अनुमतिः) अ० १।१८।२। अनुकूला बुद्धिः। अनुमती राकेति देवपत्न्याविति नैरुक्ताः पौर्णमास्याविति याज्ञिका या पूर्वा पौर्णमासी सानुमतिर्योत्तरा सा राकेति विज्ञायते। अनुमतिरनुमननात्-निरु० ११।२९। (यज्ञम्) संगतिव्यवहारम् (देवेषु) विद्वत्सु (मन्यताम्) जानातु। ज्ञापयतु (अग्निः) पराक्रमः (च) (हव्यवाहनः) हव्येऽनन्तःपादम्। पा० ३।२।६६। इति हव्य+वह प्रापणे ञ्युट्। ग्राह्यपदार्थस्य प्रापकः (भवताम्) आत्मनेपदं छान्दसम्। भवतात् (दाशुषे) दानशीलाय (मम) चतुर्थ्यां षष्ठी। मह्यम् ॥