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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
गृहस्थ के कर्म का उपदेश।
Word-Meaning: - (धाता) सबका पोषण करनेवाला ईश्वर (दाशुषे) उदारचित पुरुष को (प्राचीम्) अच्छे प्रकार आदर योग्य (अक्षिताम्) अक्षय (जीवातुम्) जीविका (दधातु) देवे। (विश्वराधसः) सर्वधनी (देवस्य) प्रकाशस्वरूप ईश्वर की (सुमतिम्) सुमति [यथावत् विषयवाली बुद्धि] को (वयम्) हम (धीमहि) धारण करें ॥२॥
Connotation: - मनुष्य परमेश्वर के धारण पोषण आदि गुणों के चिन्तन से बुद्धि बढ़ा कर धनी और बली होवें ॥२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से स्वामी दयानन्द कृत संस्कारविधि, सीमन्तोन्नयन में और निरुक्त ११।११। में आया है ॥
Footnote: २−(धाता) सर्वपोषकः (दधातु) ददातु (दाशुषे) अ० ४।२४।१। दानशीलाय (प्राचीम्) प्रकर्षेण पूज्याम् (जीवातुम्) अ० ६।५।२। जीविकाम्-निरु० ११।११। (अक्षिताम्) अक्षीणाम् (वयम्) पुरुषार्थिनः (देवस्य) प्रकाशस्वरूपस्य (धीमहि) डुधाञ् धारणपोषणयोः-विधिलिङ्। छन्दस्युभयथा। पा० ३।४।११७। आर्धधातुकत्वाच्छप् न। आतो लोप इटि च। पा० ६।४।६४। आकारलोपः। दधीमहि। धरेम (सुमतिम्) कल्याणीं मतिम् (विश्वराधसः) सर्वधनिनः ॥