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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ईश्वर के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (यस्य) जिसकी (ऊर्ध्वा) ऊँची, (अमतिः) व्यापनेवाली (माः) चमक (सवीमनि) सृष्टि के बीच (अदिद्युतत्) चमकी हुई है। (हिरण्यपाणिः) अन्धकार वा दरिद्रता हरनेवाले सूर्य आदि सुवर्ण आदि तेजों के व्यवहारवाले, (सुक्रतुः) उत्तम बुद्धि वा कर्मवाले उस ईश्वर ने (कृपात्) अपने सामर्थ्य से (स्वः) स्वर्ग अर्थात् मोक्ष सुख (अमिमीत) रचा है ॥२॥
Connotation: - उस जगदीश्वर की अनन्तशक्ति का विचार करके मनुष्य मोक्ष आनन्द के लिये सदा प्रयत्न करें ॥२॥
Footnote: २−(ऊर्ध्वा) उत्कृष्टा (यस्य) सवितुः। परमेश्वरस्य (अमतिः) अमेरतिः। उ० ४।५९। अम गतौ-अति। व्यापनशीला (भाः) दीप्तिः (अदिद्युतत्) द्युत दीप्तौ स्वार्थे णिजन्ताच् चङि, रूपम् अद्युतत्। अदीपि (सवीमनि) जनिमृङ्भ्यामिमनिन्। उ० ४।१४९। इति षूङ् प्राणिप्रसवे-इमनिन्, वा दीर्घः। सवीमनि प्रसवे-निरु०, ६।७। सृष्टौ (हिरण्यपाणिः) हिरण्यानि अन्धकारस्य दारिद्र्यस्य वा हरणशीलानि सूर्यादीनि सुवर्णादीनि वा पाणौ व्यवहारे यस्य सः (अमिमीत) अ० ५।१२।११। निर्मितवान् (सुक्रतुः) शोभना क्रतुः प्रज्ञाः, कर्म वा यस्य सः (कृपात्) कृपू सामर्थ्ये-क। स्वसामर्थ्यात् (स्वः) स्वर्गं मोक्षसुखम् ॥