Go To Mantra

स॒भा च॑ मा॒ समि॑तिश्चावतां प्र॒जाप॑तेर्दुहि॒तरौ॑ संविदा॒ने। येना॑ सं॒गच्छा॒ उप॑ मा॒ स शि॑क्षा॒च्चारु॑ वदानि पितरः॒ संग॑तेषु ॥

Mantra Audio
Pad Path

सभा । च । मा । सम्ऽइति: । च । अवताम् । प्रजाऽपते: । दुहितरौ । संविदाने इति सम्ऽविदाने । येन । सम्ऽगच्छै ।उप । मा । स: । शिक्षात् । चारु । वदानि । पितर: । सम्ऽगतेषु ॥१३.१॥

Atharvaveda » Kand:7» Sukta:12» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सभापति के कर्तव्यों का उपदेश।

Word-Meaning: - (प्रजापतेः) प्रजापति अर्थात् प्रजारक्षक पुरुषार्थ की (दुहितरौ) पूरण करनेवाली [वा दो पुत्रियों के समान हितकारी] (संविदाने) यथावत् मेलवाली (सभा) सभा, विद्वानों की संगति (च च) और (समितिः) एकता (मा) मुझे (अवताम्) तृप्त करें। (येन) जिस पुरुष के साथ (संगच्छै) मैं मिलूँ, (सः) वह (मा) मुझे (उप) आदर से (शिक्षात्) समर्थ करे, (पितरः) हे पितरो, पालन करनेवाले विद्वानो ! (संगतेषु) सम्मेलनों के बीच मैं (चारु) ठीक-ठीक (वदानि) बोलूँ ॥१॥
Connotation: - सभापति ऐसा सुशिक्षित और सुयोग्य पुरुष हो कि संगठन की सफलता के लिये सब सभासद् एकमत हो जावें, और उसके धर्मयुक्त वचन को मानकर उसके सहायक रहें ॥१॥ इस सूक्त का मिलान अ० का० ६। सू० ६४। से करो ॥
Footnote: १−(सभा) अ० ४।२१।६। विद्वद्भिः प्रकाशमानः समाजः (च) (मा) मां सभापतिम् (समितिः) अ० ६।६४।२। एकता। एकात्मता (प्रजापतेः) प्रजारक्षकस्य पुरुषार्थस्य (दुहितरौ) अ० ३।१०।१३। दुह प्रपूरणे-तृच्। प्रपूरयित्र्यौ। पुत्रीवत् हितकारिण्यौ (संविदाने) अ० २।२८।२। संगच्छमाने (येन) पुरुषेण सह (संगच्छै) संगतो भवानि (उप) आदरे (मा) माम् (सः) पुरुषः (शिक्षात्) शकेः सन्नन्तात् लेट्। शक्तं समर्थं कुर्य्यात् (चारु) अ० २।५।१। मनोहरम् (वदानि) कथयानि (पितरः) हे पालका विद्वांसः (संगतेषु) सम्मेलनेषु ॥