Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
दुर्लक्षण के नाश का उपदेश।
Word-Meaning: - (पापि) हे पापी ! (लक्ष्मि) लक्षण [लक्ष्मी] ! (इतः) यहाँ से (प्र पत) चला जा, (इतः) यहाँ से (नश्य) छिप जा, (अमुतः) वहाँ से (प्र पत) चला जा। (अयस्मयेन) लोहे के (अङ्केन) काँटे से (त्वा) तुझको (द्विषते) वैरी में (आ सजामसि) हम चिपकाते हैं ॥१॥
Connotation: - मनुष्य दुर्लक्षणों का सर्वथा त्याग करें। दुर्लक्षणों से दुष्ट लोग महादुःख पाते हैं ॥१॥
Footnote: १−(प्र पत) बहिर्गच्छ (इतः) अस्मात् स्थानात् (पापि) केवलमामकभागधेयपापा०। पा० ४।१।३०। पाप-ङीप्, हे दुष्टे (लक्ष्मि) लक्षेर्मुट् च। उ० ३।१६०। लक्ष दर्शनाङ्कनयोः-ई, मुट् च। हे लक्षण (नश्य) अदृष्टा भव (इतः) (प्र) (अमुतः) दूरदेशात् (पत) (अयस्मयेन) लोहमयेन (अङ्केन) कण्टकेन (द्विषते) शत्रवे (त्वा) त्वाम् (आ) समन्तात् (सजामसि) षञ्ज सङ्गे सम्बन्धे च। सजामः। संबध्नीमः ॥