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हि॑र॒ण्ययी॒ नौर॑चर॒द्धिर॑ण्यबन्धना दि॒वि। तत्रा॒मृत॑स्य॒ पुष्पं॑ दे॒वाः कुष्ठ॑मवन्वत ॥

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हिरण्ययी । नौ: । अचरत् । हिरण्यऽबन्धना । दिवि । तत्र । अमृतस्य । पुष्पम् । देवा: । कुष्ठम् । अवन्वत ॥९५.२॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:95» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

विद्वानों के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (हिरण्ययी) तेजवाली [अग्नि वा बिजुली वा सूर्य से चलनेवाली] (हिरण्यबन्धना) तेजोमय बन्धनवाली (नौः) नाव (दिवि) चलने के व्यवहार में (अचरत्) चलती थी। (तत्र) वहाँ पर (अमृतस्य) अमृत के (पुष्पम्) विकाश, (कुष्ठम्) गुणपरीक्षक पुरुष को (देवाः) विद्वान् लोगों ने (अवन्वत) माँगा है ॥२॥
Connotation: - विद्वान् लोग तीक्ष्णबुद्धि मनुष्य द्वारा, अग्नि, बिजुली और सूर्य विद्या से, अग्निपोत, पुष्पक विमान आदि यान बना कर आनन्द पाते हैं ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है−अ० ५।४।४ ॥
Footnote: २−(हिरण्ययी) तेजोमयी अग्निना विद्युता सूर्येण वा गन्त्री (दिवि) गमने ॥ अन्यद्यथा−अ० ५।४।४ ॥