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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
शत्रु को जीतने का उपदेश।
Word-Meaning: - (प्रेण्यः=प्रेण्याः) तृप्त करनेवाली ओषधि का (यत्) जो (इदम्) यह (शिरः) मस्तकबल और (सोमेन) सब के उत्पन्न करनेवाले परमेश्वर करके (दत्तम्) दिया हुआ (वृष्ण्यम्) जो वीरत्व है। (ततः) उस से (परि) सब प्रकार (प्रजातेन) उत्पन्न हुए [साहस] से (ते) तेरी (हार्दिम्) हार्दिक शक्ति को (शोचयामसि) हम शोक में डालते हैं ॥१॥
Connotation: - मनुष्य सोमलता आदि उत्तम ओषधियों के सेवन से और परमेश्वर के दिये बल से शत्रुओं को पीड़ित करें ॥१॥
Footnote: १−(इदम्) शरीरस्थम् (यत्) (प्रेण्यः) वीज्याज्वरिभ्यो निः। उ० ४।४८। इति प्रीङ् प्रीतौ, वा प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च−नि, वा ङीप् छान्दसो ह्रस्वः। प्रेण्याः। तर्पयित्र्याः सोमलताद्योषध्याः (शिरः) शिरोबलम् (दत्तम्) (सोमेन) सर्वोत्पादकेन परमेश्वरेण (वृष्ण्यम्) अ० ४।४।४। वीरत्वेन (ततः) तस्माद् बलात् (परि) सर्वतः (प्रजातेन) उत्पन्नेन साहसेन (हार्दिम्) बाह्वादिभ्यश्च। पा० ४।१।९६। इति हृद्−इञ्। हार्दिकां शक्तिम् (ते) तव हे शत्रो (शोचयामसि) शोचयामः सन्तापयामः ॥