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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजतिलक यज्ञ के लिये उपदेश।
Word-Meaning: - (इन्द्रः) परमेश्वर ने (ध्रुवेण) दृढ़ (हविषा) देने लेने योग्य शुभकर्म के साथ (एतम्) इस राजा को (ध्रुवम्) दृढ़ (अदीधरत्) स्थापित किया है। (अयम्) वही (सोमः) सब का उत्पन्न करनेवाला (च) और (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्ड और वेद का पालक परमेश्वर (तस्मै) उस राजा को (अधि) अधिक-अधिक (ब्रवत्) उपदेश करे ॥३॥
Connotation: - राजा को योग्य है कि परमेश्वर में श्रद्धा करके प्रजापालन, विद्या आदि शुभकर्म करता हुआ सदा उन्नति करे ॥३॥
Footnote: ३−(इन्द्रः) परमेश्वरः (एतम्) राजानम् (अदीधरत्) धारयतेर्लुङि चङि रूपम्। धारितवान्। स्थापितवान् (ध्रुवम्) स्थिरम् (ध्रुवेण) दृढेन (हविषा) दातव्यग्राह्यशुभकर्मणा (तस्मै) राज्ञे (सोमः) सर्वोत्पादकः (अधि) अधिकमधिकम् (ब्रवत्) ब्रूयात्। उपदिशेत् (च) (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्डस्य वेदस्य च पालकः परमेश्वरः ॥