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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
साम्राज्य पाने का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे पुरुष !] (असुराणाम्) बुद्धिमानों का (सम्राट्) सम्राट्, और (मनुष्याणाम्) मननशील मनुष्यों का (ककुत्) शिखा (असि) है। (देवानाम्) जय चाहनेवालों की (अर्धभाक्) वृद्धि का बाँटनेवाला (असि) है, [हे पुरुष !] (त्वम्) तू (एकवृषः) अकेला स्वामी (भव) हो ॥३॥
Connotation: - मनुष्य सब से अधिक गुणी होकर चक्रवर्त्ती राजा बने ॥३॥
Footnote: ३−(सम्राट्) अ० ४।१।५। सम्यग्राजमानः। चक्रवर्ती (असि) वर्तसे (असुराणाम्) असुरत्वं प्रज्ञावत्वम्, असुरिति प्रज्ञानाम−निरु० १०।३४। रो मत्वर्थीयः प्रज्ञावताम् (ककुत्) अ० ३।४।२। शिखररूपी। प्रधानः (मनुष्याणाम्) मननशीलानाम् (देवानाम्) विजिगीषूणाम् (अर्धभाक्) ऋधु वृद्धौ भावे−घञ्। अर्ध+भाज पृथक्कर्मणि−क्विप्। अर्धस्य वर्धनस्य भागी। अन्यत् पूर्ववत् ॥