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अप॑चितः॒ प्र प॑तत सुप॒र्णो व॑स॒तेरि॑व। सूर्यः॑ कृ॒णोतु॑ भेष॒जं च॒न्द्रमा॒ वोऽपो॑च्छतु ॥

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अपऽचित: । प्र । पतत । सुऽपर्ण: । वसते:ऽइव । सूर्य: । कृणोतु । भेषजम् । चन्द्रमा: । व: । अप । उच्छतु ॥८३.१॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:83» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रोग नाश करने का उपदेश।

Word-Meaning: - (अपचितः) हे सुख नाश करनेवाली गण्डमाला आदि पीड़ाओ ! (प्र पतत) चली जाओ, (सुपर्णः इव) जैसे शीघ्रगामी पक्षी [श्येन] (वसतेः) अपनी वसती से। (सूर्यः) प्रेरणा करनेवाला [वैद्य वा सूर्य लोक] (भेषजम्) औषध (कृणोतु) करे, और (चन्द्रमाः) आनन्द देनेवाला [वैद्य वा चन्द्र लोक] (वः) तुम को (अप उच्छतु) निकाल देवे ॥१॥
Connotation: - जैसे सद्वैद्य गण्डमाला आदि रोगों को सूर्य वा चन्द्रमा की किरणों द्वारा वा अन्य औषधों से अच्छा करता है, वैसे ही मनुष्य विद्या की प्राप्ति से अविद्या का नाश करके सुखी होवें ॥१॥
Footnote: १−(अपचितः) अप पूर्वात् चिनोतेः−क्विप्। हे सुखनाशिका गण्डमालादिपीडाः (प्र पतत) प्रकर्षेण निर्गच्छत (सुपर्णः) अ० १।२४।१। शोभनपतनः शीघ्रगामी पक्षी (वसतेः) वहिवस्यर्त्तिभ्यश्चित्। उ० ४।६०। इति वस निवासे−अति। गृहात् नीडात् (इव) यथा (सूर्यः) प्रेरको वैद्यः सूर्यलोको वा स्वकिरणद्वारा (कृणोतु) करोतु (भेषजम्) चिकित्सनम् (चन्द्रमाः) अ० ५।२४।१०। आह्लादकरो वैद्यश्चन्द्रलोको वा स्वकिरणद्वारा (वः) युष्मान् (अपोच्छतु) उच्छी विवासे, अपवासयतु। अपवर्जयतु ॥