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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
संपदा पाने का उपदेश।
Word-Meaning: - (यः) जिस (गोपाः) भूमिपालक राजा ने (परायणम्) निकल जाने का सामर्थ्य (उदानट्) पाया है, (यः) जिस ने (न्यायनम्) भीतर जाने का सामर्थ्य, और (यः) जिसने (आवर्तनम्) घूमने और (निवर्तनम्) लौटने का सामर्थ्य (उदानट्) पाया है, (तम्) उसको (अपि) ही (हुवे) मैं बुलाता हूँ ॥२॥
Connotation: - जो मनुष्य नीतिनिपुण और कलाकुशल होवे, उसका आदर सत्कार सब मनुष्य करें ॥२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−म० १० सू० १९ म० ५ ॥
Footnote: २−(यः) बलवान् पुरुषः (उदानट्) उत्+अशू व्याप्तौ संघाते च लिटि एश्त्वे, एशो लुक्, व्रश्चादिना षत्वम्। झलां जशोऽन्ते। पा० ८।२।३९। इति डत्वम्। वावसाने। पा० ६।४।५६। इति टत्वम्। आनट्, व्याप्तिकर्मा−निघ० २।१८। उत्कर्षेण व्याप प्राप (परायणम्) बहिर्गमनसामर्थ्यम् (यः) (उदानट्) (न्यायनम्) सांहितिको दीर्घः। अन्तर्गमनम् (आवर्तनम्) चक्रवत् परिक्रमणम् (निवर्तनम्) निवृत्य गमनम् (यः) (गोपाः) गो+पा रक्षणे−विच्। भूमिपालकः। राजा (अपि) एव (तम्) तादृशम् (हुवे) आह्वयामि ॥