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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
शत्रु के हटाने का उपदेश।
Word-Meaning: - मैं (अमुम्) उस [शत्रु] को (ओकसः) उसके घर से (निर्नुदे) निकालता हूँ, (यः सपत्नः) जो शत्रु (पृतन्यति) सेना चढ़ाता है। (इन्द्रः) प्रतापी राजा ने (एनम्) उसको (नैर्बाध्येन) अपने निर्विघ्न (हविषा) ग्राह्य व्यवहार से (परा अशरीत्) मार गिराया है ॥१॥
Connotation: - सुपरीक्षित शूर वीरों के समान हम पुरुषार्थ करके अपने शत्रुओं को हटावें ॥१॥
Footnote: १−(निर्नुदे) अहं निर्गमयामि (अमुम्) शत्रुम् (ओकसः) तस्य गृहात् (सपत्नः) शत्रुः (यः) (पृतन्यति) सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। इति पृतना−क्यच्। कव्यध्वरपृतनस्यर्चि लोपः। पा० ७।४।३९। इति इत्याकारलोपः। पृतनां सेनामात्मन इच्छति (नैर्बाध्येन) ऋहलोर्ण्यत् पा० ३।१।१२४। इति निर्+बाधृ लोडने−ण्यत्। प्रज्ञादिभ्यश्च पा० ५।४।३८। इति स्वार्थे अण्। निर्बाध्येन। अबाधनीयेन (हविषा) ग्राह्येण व्यवहारेण (इन्द्रः) प्रतापी राजा (एनम्) शत्रुम् (परा) दूरे (अशरीत्) शॄ हिंसायाम्−लुङ्। अशारीत्। पराङ्मुखं हतवान् ॥