Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
यश की प्राप्ति का उपदेश।
Word-Meaning: - (मयि) मुझ में (वर्चः) प्रताप, (अथो) और (यशः) यश हो, (अथो) और (यज्ञस्य) देवपूजा आदि यज्ञ का (यत्) जो (पयः) सार है, (तत्) उसको भी (मयि) मुझ में (प्रजापतिः) प्रजापालक परमेश्वर (दृंहतु) दृढ़ करे, (इव) जैसे (दिवि) अन्तरिक्ष में (द्याम्) सूर्यमण्डल को ॥३॥
Connotation: - जैसे परमेश्वर ने आकाश में सूर्य को स्थिर करके आकर्षण, प्रकाश आदि द्वारा महा उपकारी बनाया है, वैसे ही मनुष्य उत्तम शिक्षा प्राप्त करके यशस्वी होवें ॥३॥
Footnote: ३−(मयि) प्रयत्नशीले (वर्चः) प्रतापः (अथो) अपि च (यशः) कीर्त्तिः (अथो) (यज्ञस्य) देवपूजादिकस्य (यत्) (पयः) तत्त्वम्। फलम् (तत्) पयः (मयि) (प्रजापतिः) प्रजापालकः परमेश्वरः (दिवि) अन्तरिक्षे (द्याम्) दीप्यमानं सूर्यमण्डलम् (इव) यथा (दृंहतु) दृहि वृद्धौ। दृढीकरोतु वर्धयतु ॥