Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (मूढाः) हे घबड़ाये हुए (अमित्राः) पीड़ा देनेवाले शत्रुओं ! (अशीर्षाणः) बिना शिरवाले [शिर कटे] (अहयः इव) साँपों के समान (चरत) चेष्टा करो। (इन्द्रः) प्रतापी वीर राजा (अग्निमूढानाम्) अग्नि [आग्नेय शस्त्रों] से घबड़ाये हुए (तेषां वः) उन तुम सबों में से (वरंवरम्) अच्छे-अच्छों को चुन कर (हन्तु) मारे ॥२॥
Connotation: - कुशल सेनापति इस प्रकार व्यूहरचना करे कि शत्रु के सेनादल विध्वंस होकर घबड़ा जावें और उनके बड़े-बड़े नायक मारे जावें ॥२॥
Footnote: २−(मूढाः) मुह वैचित्ये−क्त। व्याकुलाः (अमित्राः) पीडकाः शत्रवः (चरत) चेष्टां कुरुत (अशीर्षाणः) शीर्षंश्छन्दसि। प० ६।१।६०। इति शिरः शब्दस्य शीर्षन्। अशिरसः। छिन्नशिरस्काः (इव) यथा (अहयः) अ० २।५।५। आहन्तारः सर्पाः (तेषाम्) तादृशानाम् (वः) युष्माकम् (अग्निमूढानाम्) अग्निना आग्नेयास्त्रैर्व्याकुलीकृतानां मध्ये (इन्द्रः) प्रतापी वीरो राजा (हन्तु) नाशयतु (वरंवरम्) श्रेष्ठं श्रेष्ठं नायकम् ॥