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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मोक्षप्राप्ति का उपदेश।
Word-Meaning: - (वृषन्) हे बलवान् (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! (अर्यः) स्वामी होकर तू (विश्वानि इत्) सब ही [सुखों] को (संसम्) यथावत् रीति से (आ=आनीय) ला कर (युवसे) मिलाता है। और (इडः) प्रशंसा के (पदे) पदपर (सम् इध्यसे) तू सुशोभित होता है, (सः) सो तू (नः) हमारे लिये (वसूनि) अनेक धनों को (आ भर) भर दे ॥४॥
Connotation: - मनुष्य पराक्रमी धर्मात्माओं का आश्रय लेकर सम्पूर्ण धन प्राप्त करें ॥४॥ यह मन्त्र यजुर्वेद में है−अ० १५।३०। और ऋग्वेद मे भी है−म० १०।१९१।१।७। जिसके आगे के शेष तीन मन्त्र अगले सूक्त ६४ में हैं ॥
Footnote: ४−(संसम्) अतिसम्यग् रीत्या (इत्) एव (युवसे) यु मिश्रणामिश्रणयोः, तुदादित्वमात्मनेपदत्वं च छान्दसम्। यौषि। मिश्रयसि (वृषन्) बलवन् (अग्ने) हे विद्वन् पुरुष (विश्वानि) सर्वाणि सुखानि (अर्यः) अर्यः स्वामिवैश्ययोः। पा० ३।१।१०३। इति ऋ गतौ−यत् प्रत्ययो निपातनात्। स्वामी त्वम् (आ) आनीय (इडः) ईड स्तुतौ−क्विप्, ह्रस्वश्च। प्रशंसायाः (पदे) अधिकारे (सम्) सम्यक् (इध्यसे) दीप्यसे। (सः) त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (वसूनि) धनानि (आ) समन्तात् (भर) धर ॥