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वै॑श्वान॒रो र॒श्मिभि॑र्नः पुनातु॒ वातः॑ प्रा॒णेने॑षि॒रो नभो॑भिः। द्यावा॑पृथि॒वी पय॑सा॒ पय॑स्वती ऋ॒ताव॑री यज्ञिये नः पुनीताम् ॥

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वैश्वानर: । रश्मिऽभि: । न: । पुनातु । वात: । प्राणेन । इषिर: । नभ:ऽभि: । द्यावापृथिवी इति । पयसा । पयस्वती इति । ऋतवरी इत्यृतऽवरी । यज्ञिये इति । न: । पुनीताम् ॥६२.१॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:62» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

धन और नीरोगता का उपदेश।

Word-Meaning: - (वैश्वानरः) सब नरों का हितकारी परमेश्वर (रश्मिभिः) विद्याप्रकाशों से और (इषिरः) शीघ्रगामी (वातः) पवन (प्राणेन) प्राण से और (नभोभिः) मेघों से (नः) हमें (पुनातु) पवित्र करे। (पयस्वती) रसवाली (ऋतावरी) सत्यशील और (यज्ञिये) संगति करने योग्य (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी लोक (पयसा) अपने रस से (नः) हमें (पुनीताम्) शुद्ध करें ॥१॥
Connotation: - मनुष्य विज्ञानपूर्वक सूर्य, वायु, मेघ, पृथिवी, आदि पदार्थों से शिल्प आदि और शरीररक्षण आदि में उपकार लेकर सुखी हों ॥१॥
Footnote: १−(वैश्वानरः) सर्वनरहितः परमेश्वरः (रश्मिभिः) विद्याप्रकाशैः (नः) अस्मान् (पुनातु) शोधयतु (वातः) वायुः (प्राणेन) श्वासप्रश्वासव्यापारेण (इषिरः) अ० ५।१।९। गमनशीलः (नभोभिः) अ० ४।१५।३। मेघैः (द्यावापृथिवी) सूर्यभूलोकौ (पयसा) रसेन (पयस्वती) रसवत्यौ (ऋतावरी) अ० ३।१३।७। सत्ययुक्ते (यज्ञिये) संगतिकरणयोग्ये (नः) (पुनीताम्) शोधयताम् ॥