Go To Mantra

अ॒हं ज॑जान पृथि॒वीमु॒त द्याम॒हमृ॒तूंर॑जनयं स॒प्त सिन्धू॑न्। अ॒हं स॒त्यमनृ॑तं॒ यद्वदा॑मि॒ यो अ॑ग्नीषो॒मावजु॑षे॒ सखा॑या ॥

Mantra Audio
Pad Path

अहम् । जजान । पृथिवीम् । उत । द्याम् । अहम् । ऋतून् । अजनयम् । सप्त । सिन्धून् । अहम् । सत्यम् । अनृतम् । यत् । वदामि । य: । अग्नीषोमौ । अजुषे । सखाया ॥६१.३॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:61» Paryayah:0» Mantra:3


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमेश्वर की महिमा का उपदेश।

Word-Meaning: - (अहम्) मैंने (पृथिवीम्) पृथिवी (उत) और (द्याम्) सूर्य को (जजान) उत्पन्न किया, (अहम्) मैंने (सप्त) सात (ऋतून्) [त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] को और (सिन्धून्) उनकी व्यापक शक्तियों को (अजनयम्) उत्पन्न किया है। (अहम्) मैं (सत्यम्) सत्य और (अनृतम्) झूठ (यत्) जो कुछ है [उसे] (वदामि) बताता हूँ, (यः) जिसमें (सखाया) आपस में मित्र (अग्नीषोमौ) अग्नि और जल को (अजुषे) तृप्त किया है ॥३॥
Connotation: - परमेश्वर ने सब पृथिवी आदि पदार्थ और इन्द्रियों और इन्द्रियों की शक्तियों को रचकर धर्म और अधर्म का लक्षण बताया है और अग्नि और जल वायु आदि को संसार की स्थिति का कारण रक्खा है, उसी की उपासना सब मनुष्य करें ॥३॥ इति षष्ठोऽनुवाकः ॥
Footnote: ३−(जजान) उत्पादितवानस्मि (ऋतून्) म० २। पतनशीलान् ऋषीन् त्वक्चक्षुरादीन् (सप्त) सप्तसंख्यकान् (सिन्धून्) अ० ४।६।२। स्पन्दनशीला व्यापिकाः शक्तीः, त्वक्चक्षुरादीनाम् (यः) अहं परमेश्वरः (अग्नीषोमौ) अग्निं च जलं च (अजुषे) जुषी प्रीतिसेवनयोः। तर्पितवानस्मि (सखाया) सखायौ, सहायभूतौ। अन्यत् पूर्ववत् ॥