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सब॑न्धु॒श्चास॑बन्धुश्च॒ यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॑ति। सर्वं॒ तं र॑न्धयासि मे॒ यज॑मानाय सुन्व॒ते ॥

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सऽबन्धु: । च । असबन्धु: । च । य: । अस्मान् । अभिऽदासति । सर्वम् । तम् । रन्धयासि । मे । यजमानाय । सुन्वते ॥५४.३॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:54» Paryayah:0» Mantra:3


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राज्य की रक्षा के लिये उपदेश।

Word-Meaning: - (यः) जो शत्रु (सबन्धुः) बन्धुओं सहित (च च) और (असबन्धुः) बिना बन्धुओं के होकर (अस्मान्) हमें (अभिदासति) सतावे। (तम्) उस (सर्वम्) सब को (सुन्वते) तत्त्वमथन करनेवाले (यजमानाय) विद्वानों का सत्कार करनेवाले (मे) मेरे लिये (रन्धयासि) वश में कर ॥३॥
Connotation: - धार्मिक पुरुष परमात्मा की आज्ञा मान कर तत्त्वमथन कर के शत्रुओं का नाश करें ॥३॥ इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध अ० ६।१५-२। और उत्तरार्द्ध अ० ६।६।१। में आया है ॥
Footnote: ३−पूर्वार्द्धो व्याख्यातः−अ० ६।१५।२। उत्तरार्द्धः−अ० ६।६।१।