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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
आत्मा के दोष के नाश का उपदेश।
Word-Meaning: - (आदित्यः) सब ओर प्रकाशवाला, (विश्वदृष्टः) सबों करके देखा गया और (अदृष्टहा) न दीखते हुए पदार्थों में गतिवाला (सूर्यः) सूर्य (दिवः) अन्तरिक्ष के बीच (रक्षांसि) राक्षसों [अन्धकार आदि उपद्रवों] को (निजूर्वन्) सर्वथा नाश करता हुआ (पर्वतेभ्यः) मेघों वा पहाड़ों से (पुरः) सन्मुख (उत् एति) उदय होता है ॥१॥
Connotation: - जैसे सूर्य अन्धकार हटा कर प्रकाश करता है, वैसे ही विद्वान् लोग अविद्या मिटा कर विद्या का प्रकाश करते हैं ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−म० १।१९१।८, ९ ॥
Footnote: १−(उत्) उद्नत्य (सूर्यः) लोकस्य प्रेरको दिनकरः (दिवः) अन्तरिक्षस्य मध्यात् (एति) गच्छति (पुरः) अग्रे (रक्षांसि) अ० १।२१।३। रक्षो रक्षितव्यमस्मात्−निरु० ४।१८। अन्धकारादीन् उपद्रवान् (निजूर्वन्) जुर्वी हिंसायाम्−शतृ। नितरां नाशयन् (आदित्यः) अ० १।९।१। आदीप्यमानः (पर्वतेभ्यः) मेघेभ्यः शैलेभ्यो वा (विश्वदृष्टः) विश्वेन दृष्टः (अदृष्टहा) अ० ५।२३।६। अदृष्टान् अन्धकारयुक्तान् पदार्थान् हन्ति गच्छतीति यः सः ॥