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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
वृद्धि करने का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे आचार्य !] (लोहितेन) प्रकाश के साथ और (स्वधितिना) और आत्मधारण सामर्थ्य के साथ (कर्णयोः) हमारे दोनों कानों में (मिथुनम्) विज्ञान (कृधि) कर। (अश्विना) कामों में व्याप्तिवाले माता-पिता ने (लक्ष्म) [हम में] शुभ लक्षण (अकर्ताम्) किया है (तत्) वह [शुभलक्षण] (प्रजया) सन्तान के साथ (बहु) अधिक समृद्ध (अस्तु) होवे ॥२॥
Connotation: - जहाँ गुणी माता-पिता और आचार्य बालकों के शिक्षक होते हैं, वहाँ बालक गुणी धनी और बली होते हैं ॥२॥
Footnote: २−(लोहितेन) अ० ६।१२७।१। प्रादुर्भावेन प्रकाशेन सह (स्वधितिना) स्व+धि धारणे−क्तिन्। आत्मधारणेन (मिथुनम्) क्षुधिपिशिमिथिभ्यः कित्। उ० ३।५५। इति मिथृ वधे मेधायां च−उनन्। विज्ञानम् (कर्णयोः) कॄवृजॄ०। उ० ३।१०। इति कॄ विक्षेपे−न। श्रोत्रयोः (कृधि) कुरु (अकर्ताम्) कृतवन्तौ (अश्विना) अ० २।२९।६। कार्येषु व्यापकौ मातापितरौ (लक्ष्म) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। इति लक्ष दर्शनाङ्कनयोः आलोचने च−मनिन्। शुभलक्षणम् (तत्) लक्ष्म (अस्तु) (प्रजया) सन्तत्या (बहु) बहुलं समृद्धम् ॥