Go To Mantra

दे॒वी दे॒व्यामधि॑ जा॒ता पृ॑थि॒व्याम॑स्योषधे। तां त्वा॑ नितत्नि॒ केशे॑भ्यो॒ दृंह॑णाय खनामसि ॥

Mantra Audio
Pad Path

देवी । देव्याम् । अधि । जाता । पृथिव्याम् । असि । ओषधे । ताम् । त्वा । निऽतत्नि । केशेभ्य: । दृंहणाय । खनामसि ॥१३६.१॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:136» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

केश के बढ़ाने का उपदेश।

Word-Meaning: - (ओषधे) हे ओषधि ! तू (देव्याम्) दिव्य [प्रकाशवाली, अच्छे गुणवाली] (पृथिव्याम्) पृथिवी में (अधि) ठीक ठीक (जाता) उत्पन्न हुई (देवी) दिव्य गुणवाली (असि) है। (नितत्नि) हे नीचे को फैलनेवाली, नितत्नी ! [ओषधी विशेष] (ताम् त्वा) उस तुझ को (केशेभ्यः) केशों के (दृंहणाय) दृढ़ करने और बढ़ाने के लिये (खनामसि) हम खोदते हैं ॥१॥
Connotation: - मनुष्य नितत्नी नाम ओषधि को केश दृढ़ करने और बढ़ाने के लिये काम में लावें। काचमाची फल, जीवन्तीफल और भृङ्गराज वा भंगरा ओषधि के भी केश बढ़ाना आदि गुण हैं ॥१॥
Footnote: १−(देवी) दिव्यगुणा (देव्याम्) दिव्यगुणायाम् (अधि) अधिकम् (जाता) उत्पन्ना (पृथिव्याम्) (असि) (ओषधे) (ताम्) तादृशीम् (त्वा) (नितत्नि) आदृगमहन०। पा० ३।२।१७१। इति तनोतेः−कि, लिड्वद्भावाद् द्विर्वचनम्। तनिपत्योश्छन्दसि। पा० ६।४।९९। उपधालोपः। हे नितन्वाने न्यक्प्रसरणशीले (केशेभ्यः) केशानामर्थे (दृंहणाय) दृढीकरणाय। वर्धनाय (खनामसि) खनामः। खोडामः ॥