सेना और सेनापति के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (वनस्पते) हे किरणों के पालन करनेवाले सूर्य के समान राजन् ! वीड्वङ्गः) बलिष्ठ अङ्गोंवाला तू (हि) ही (प्रतरणः) बढ़ानेवाला (सुवीरः) अच्छे-अच्छे वीरों से युक्त (अस्मत्सखा) हमारा मित्र (भूयाः) हो। तू (गोभिः) बाणों और वज्रों से (संनद्धः) अच्छे प्रकार सजा हुआ (असि) है, [हमें] (वीडयस्व) दृढ बना, (ते) तेरा (आस्थाता) श्रद्धावान् सेनापति (जेत्वानि) जीतने योग्य शत्रुओं की सेनाओं को (जयन्तु) जीते ॥१॥
Connotation: - परस्पर नित्य सम्बन्धवाले सूर्य और किरणों के समान राजा, सेना और प्रजा का परस्पर नित्य संबन्ध होवे, और जितेन्द्रिय बलवान् राजा के समान सेना और प्रजा भी जितेन्द्रिय और बलवान् होवें ॥१॥ मन्त्र १-३ कुछ भेद से ऋ० ६।४७।२६−२८ और यजुर्वेद २९।५२-५४ में है। इन का भाष्य महर्षि दयानन्द सरस्वती के आधार पर किया गया है ॥१॥