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स प॑चामि॒ स द॑दामि। स य॑जे॒ स द॒त्तान्मा यू॑षम् ॥

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स: । पचामि । स: । ददामि । स: । यजे । स: । दत्तात् । मा । यूषम् ॥१२३.४॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:123» Paryayah:0» Mantra:4


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

विद्वानों से सत्सङ्ग का उपदेश।

Word-Meaning: - (सः) क्लेशनाशक मैं [अन्न] को (पचामि) परिपक्व करता हूँ, (सः) वही मैं (ददामि) दान करता हूँ, (सः) वही मैं (यजे) विद्वानों को पूजता हूँ (सः) वह मैं (दत्तात्) दान से [सुपात्रों के लिये] (मा यूषम्) पृथक् न होऊँ ॥४॥
Connotation: - मनुष्य पुरुषार्थ के साथ सुपात्रों का सत्कार करके कीर्तिमान् होवें ॥४॥
Footnote: ४−(सः)−म० ३। क्लेशनाशकः (पचामि) पाकेन संस्करोमि (सः) प्रसिद्धः (ददामि) दानानि करोमि (यजे) देवान् पूजयामि (दत्तात्) सुपात्रेभ्यो दानात् (मा यूषम्) यु मिश्रणामिश्रणयोः−माङि लुङि च्लेः सिच्, छान्दसो दीर्घः। पृथक्कृतो मा भूवम् ॥