Word-Meaning: - हम (अस्मिन् लोके) इस लोक [बालकपन] में (अनृणाः) अऋण, (परस्मिन्) दूसरे [युवापन] में (अनृणाः) अऋण और (तृतीये) तीसरे [बुढ़ापे] में (अनृणाः) अऋण (स्याम) होवें। (देवयानाः) विजय चाहनेवाले और व्यापारियों के यान अर्थात् विमान रथ आदि के चलने योग्य (च) और (पितृयाणाः) पालन करनेवाले विज्ञानियों के गमनयोग्य (ये) जो (लोकाः) लोक [स्थान] और (पथः=पन्थानः) मार्ग हैं, (सर्वान्) उन सब में (अनृणाः) हम अऋण होकर (आ) सब ओर से (क्षियेम) चलते रहें ॥३॥
Connotation: - मनुष्य ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या अभ्यास से बालकपन का ऋण, गृहस्थ आश्रम में धन और प्रजापालन आदि की सफलता से युवावस्था का ऋण, और वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम के सेवन से बुढ़ापे का ऋण चुकाकर महात्माओं के समान धार्मिक होकर परोपकारी बनें ॥३॥