Go To Mantra

त्रि॒ते दे॒वा अ॑मृजतै॒तदेन॑स्त्रि॒त ए॑नन्मनु॒ष्येषु ममृजे। ततो॒ यदि॑ त्वा॒ ग्राहि॑रान॒शे तां ते॑ दे॒वा ब्रह्म॑णा नाशयन्तु ॥

Mantra Audio
Pad Path

त्रिते । देवा: । अमृजत । एतत् । एन: । त्रित: । एनत् । मनुष्येषु । ममृजे । तत: । यदि। त्वा । ग्राहि: । आनशे । ताम् । ते । देवा: । ब्रह्मणा । नाशयन्तु ॥११३.१॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:113» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

पाप शुद्ध करने का उपदेश।

Word-Meaning: - (त्रिते) तीनों कालों वा लोकों में फैले हुए त्रित परमात्मा के बीच [वर्तमान] (देवाः) विद्वानों ने (एतत्) इस (एनः) पाप को (अमृजत) शुद्ध किया है, (त्रितः) त्रिलोकीनाथ त्रित परमेश्वर ने (एनत्) इस [पाप] को (मनुष्येषु) मनुष्यों में [ज्ञान द्वारा] (ममृजे) शोधा है। [हे मनुष्य !] (ततः) इस पर भी (यदि) जो (त्वा) तुझको (ग्राहिः) जकड़नेवाली पीड़ा [गठिया आदि] ने (आनशे) घेर लिया है, (देवाः) विद्वान् लोग (ते) तेरा (ताम्) उस [पीड़ा] को (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (नाशयन्तु) नाश करें ॥१॥
Connotation: - परमात्मा ने वेद द्वारा मनुष्य को पापनाश का उपाय बताया है, यह बात साक्षात् करके विद्वानों ने अपने दोष नाश किये हैं, इतना जानने पर भी यदि मनुष्य पाप में फँसे तो विद्वानों से पूछकर दोषनिवृत्ति करें ॥१॥
Footnote: १−(त्रिते) अ० ५।१।१। त्रि+तनु विस्तारे−ड। त्रिषु कालेषु लोकेषु वा विस्तीर्णे परमेश्वरे वर्त्तमानाः (देवाः) विद्वांसः (अमृजत) मृजू शौचालङ्कारयोः। शोधितवन्तः (एतत्) आत्मनि वर्त्तमानम् (एनः) अ० २।१०।८। पापम् (त्रितः) त्रिलोकीनाथः (एनत्) पापम् (मनुष्येषु) (ममृजे) मृष्टवान् (ततः) तदनन्तरमपि (यदि) (त्वा) (ग्राहिः) अ० २।९।१। अङ्गग्रहीत्री पीडा (आनशे) अश्नोतेश्च। पा० ७।४।७२। इत्यभ्यासादुत्तरस्य नुट्। व्याप (ताम्) ग्राहिम् (ते) तव (देवाः) विद्वांसः (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (नाशयन्तु) ॥