Go To Mantra

पि॑प्प॒ली क्षि॑प्तभेष॒ज्यु॒ताति॑विद्धभेष॒जी। तां दे॒वाः सम॑कल्पयन्नि॒यं जीवि॑त॒वा अल॑म् ॥

Mantra Audio
Pad Path

पिप्पली । क्षिप्तऽभेषजी । उत । अतिविध्दऽभेषजी । ताम् । देवा: । सम् । अकल्पयन् । इयम् । जीवितवै । अलम् ॥१०९.१॥

Atharvaveda » Kand:6» Sukta:109» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रोग के नाश के लिये उपदेश।

Word-Meaning: - (पिप्पली) पालन करनेवाली, पिप्पली [ओषधिविशेष] (क्षिप्तभेषजी) विक्षिप्त, उन्मत्त की ओषधि, (उत) और (अतिविद्धभेषजी) बड़े घाववाले की ओषधी है। (देवाः) विद्वानों ने (ताम्) उसको (सम् अकल्पयन्) अच्छे प्रकार माना है कि (इयम्) यह (जीवितवै) जिलाने के लिये (अलम्) समर्थ है ॥१॥
Connotation: - जिस प्रकार पीपली, ओषधिविशेष के सेवन से अनेक रोग की निवृत्ति होती है, वैसे ही मनुष्य कर्मों के फलभोग से सुख पावें ॥१॥ पिप्पली के गुण ज्वर, कुष्ठ, प्रमेह, गुल्म, अर्श, प्लीह, शूल, आम आदि रोगों का नाश करना है−शब्दकल्पद्रुम ॥
Footnote: १−(पिप्पली) कलस्तृपश्च। उ० १।१०४। इति पा पालने, वा पॄ पालनपूरणयोः−कल। पृषोदरादिरूपम्, ङीप्। पालयित्री पूरयित्री वा। ओषधिविशेषा। अस्या गुणा ज्वरकुष्ठादिनाशकाः (क्षिप्तभेषजी) विक्षिप्तस्योन्मत्तस्य रोगनिवर्तिका (उत) अपिच (अतिविद्वभेषजी) व्यध ताडने−क्त। अतिक्षतस्य पुरुषस्य व्याधिनिवर्तिका (ताम्) (देवाः) वैद्याः (सम्) सम्यक् (अकल्पयन्) कल्पितवन्तः (इयम्) पिप्पली (जीवितवै) जीव प्राणधारणे णिचि तुमर्थे तवै प्रत्ययः। जीवयितुम् (अलम्) समर्था। पर्य्याप्ता ॥