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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
जितेन्द्रिय होने का उपदेश।
Word-Meaning: - (अश्विना) हे सूर्य और चन्द्रमा [के समान नियमवाले पुरुष !] (यथा) जैसे (अयम्) यह (वाहः) लट्टू पशु [घोड़ा बैल आदि] (समैति) मिलकर आता है (च) और (सम्) ठीक-ठीक (वर्तते) वर्तता है। (एव) वैसे ही [हे जीव !] (माम् अभि) मेरी ओर (ते मनः) तेरा मन (समैतु) मिल कर आवे (च) और (सम् वर्तताम्) ठीक-ठीक वर्ताव करे ॥१॥
Connotation: - जैसे मनुष्य पशु आदि को शिक्षा देकर सुमार्ग पर चलाता है, वैसे ही जितेन्द्रिय पुरुष मन को वश में करके शुभ मार्ग में अपने को चलावे ॥१॥
Footnote: १−(यथा) येन प्रकारेण (अयम्) पुरोवर्तमानः (वाहः) भारवाहकः पशुः (अश्विना) अ० २।२९।६। अश्विनौ सूर्य्याचन्द्रमसावित्येके−निरु० १२।१। हे सूर्यचन्द्रतुल्यनियमवन् पुरुष (समैति) संगत्यागच्छति (सम्) सम्यक् (च) (वर्तते) भवति (एव) एवम् (माम्) जितेन्द्रिय (अभि) प्रति (ते) तव (मनः) मननसाधनं चित्तम् (समैतु) संगत्यागच्छतु (सम् च वर्तताम्) ॥