Word-Meaning: - (ये) जो महात्मा लोग (विष्टारिणम्) विस्तारवान् (ओदनम्) सेचनसमर्थ वा अन्नरूप परमात्मा को [हृदय में] (पचन्ति) परिपक्व करते हैं, (एनान्) इन लोगों को (अवर्त्तिः) दरिद्रता (कदा चन) कभी भी (न) नहीं (सचते) मिलती है। [जो पुरुष] (यमे) नियम वा न्यायकारी परमात्मा में (आस्ते) रहता है, [वह] (देवान्) उत्तम गुणों को (उप) अधिक-अधिक (याति) पाता है, और (गन्धर्वैः) पृथिवी आदि लोकों वा वेदवाणियों को धारण करनेवाले (सोम्येभिः) सोम अर्थात् ऐश्वर्ययोग्य महात्माओं से (सम्) मिल कर (मदते) आनन्द भोगता है ॥३॥
Connotation: - योगी जन परमात्मा में श्रद्धा रखकर सदा उदारचित्त रहते हैं, क्योंकि जितेन्द्रिय पुरुष ही विद्वानों के सत्सङ्ग से उत्तम-उत्तम गुण पाकर आनन्द भोगते हैं ॥३॥