अ॒स्थिभ्य॑स्ते म॒ज्जभ्यः॒ स्नाव॑भ्यो ध॒मनि॑भ्यः। यक्ष्मं॑ पा॒णिभ्या॑म॒ङ्गुलि॑भ्यो न॒खेभ्यो॒ वि वृ॑हामि ते ॥
Pad Path
अस्थिभ्य: । ते । मज्जऽभ्य: । स्नावऽभ्य: । धमनिऽभ्य: ॥ यक्ष्मम् । पाणिऽभ्याम् । अङ्गुलिऽभ्य: । नखेभ्य: । वि । वृहामि । ते ॥९६.२२॥
Atharvaveda » Kand:20» Sukta:96» Paryayah:0» Mantra:22
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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
शारीरिक विषय में शरीररक्षा का उपदेश।
Word-Meaning: - (ते) तेरे (अस्थिभ्यः) हड्डियों से, (मज्जभ्यः) मज्जा धातु [हड्डी के भीतर के रस] से, (स्नावभ्यः) सूक्ष्म नाड़ियों [वा पुट्ठों] से, और (धमनिभ्यः) स्थूल नाड़ियों से, और (ते) तेरे (पाणिभ्याम्) दोनों हाथों से, (अङ्गुलिभ्यः) अङ्गुलियों से और (नखेभ्यः) नखों से (यक्ष्मम्) क्षयी रोग को (वि वृहामि) मैं जड़ से उखाड़ता हूँ ॥२२॥
Connotation: - मनुष्य अपने शरीर के भीतरी धातुओं, नाड़ियों और हाथ आदि बाहिरी अङ्गों को यथायोग्य आहार-विहार से पुष्ट और स्वस्थ रक्खें, जिससे आत्मिक शक्ति सदा बढ़ती रहे ॥२२॥
Footnote: १७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥