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ऊ॒रुभ्यां॑ ते अष्ठी॒वद्भ्यां॒ पार्ष्णि॑भ्यां॒ प्रप॑दाभ्याम्। यक्ष्मं॑ भस॒द्यं श्रोणि॑भ्यां॒ भास॑दं॒ भंस॑सो॒ वि वृ॑हामि ते ॥

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ऊरुऽभ्याम् । ते । अष्ठीवत्ऽभ्याम् । पार्ष्णिऽभ्याम् । प्रऽपदाभ्याम् ॥ यक्ष्मम् । भसद्यम् । श्रोणिऽभ्याम् । भासदम् । भंसस: । वि । वृहामि । ते ॥९६.२१॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:96» Paryayah:0» Mantra:21


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

शारीरिक विषय में शरीररक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (ते) तेरी (ऊरुभ्याम्) दोनों जंघाओं से, (अष्ठीवद्भ्याम्) दोनों घुटनों से (पार्ष्णिभ्याम्) दोनों एड़ियों से, (प्रपदाभ्याम्) दोनों पैरों के पंजों से और (ते) तेरे (श्रोणिभ्याम्) दोनों कूल्हों से [वा नितम्बों से] और (भंससः) गुह्य स्थान से (भसद्यम्) कटि [कमर] के और (भासदम्) गुह्य के (यक्ष्मम्) क्षयी रोग को (वि वृहामि) मैं जड़ से उखाड़ता हूँ ॥२१॥
Connotation: - इस मन्त्र में कटि के नीचे के अवयवों का वर्णन है। भावार्थ मन्त्र १७ के समान है ॥२१॥
Footnote: १७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥